मङ्गलाचरणम्
व्रजेन्द्रसुतप्रेयसीचरणपद्मसेवाग्रहो
मुहुर्हि हरिनाम यो रतधिया गृणाति प्रियम् ।
तमेव किल दर्शकं मधुररागभक्त्यध्वनो
नमामि करुणामयं हि ललिता-प्रसादं प्रभुम् ॥
जनकगुरुसमक्षमानुगत्येऽतिदक्ष
विदितविहितदीक्ष लब्धवात्सल्यशिक्ष ।
भजनगतमनस्क साधुचर्यातितीक्ष्ण
विगतजगदपेक्ष रक्ष मां सिद्धकक्ष ॥
नित्यानन्दकृपाजलेन सिचितः श्रीजाह्नवाधारया
प्रेम्णा गौरगदाधरेति युगलं यस्तत्त्ववित् सेवते।
तं त्वां गोद्रुमवासिनां मुकुटगं रूपानुगानां वरं
हे श्रीभक्तिविनोद देव परया भक्त्या नमामो वयम्॥
यह नया ब्लाग का नाम है प्रेम प्रयोजन। गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय का सिद्धान्त है कि प्रेम ही पञ्चम पुरुषार्थ है। प्रेम का अर्थ मुख्यतः भगवत्प्रेम है लेकिन उसका आनुषङ्गिक फल और रूपान्तर है मनुष्य प्रेम। अधिकं तु, हमारा सिद्धान्त है कि मनुष्य प्रेम भी भगवत्प्रेम प्राप्ति का एक मुख्य साधना हो सकता है।
बहुत दिनों से मेरा अंग्रेजी ब्लाग है। जिन पाठकों को अंग्रेजी आती है वे वहां मेरे सब मतादि विस्तार से देख सकते हैं। मेरी मातॄभाषा अंग्रेजी है, लेकिन आजकाल मैं भारतवर्ष में रहा करता हूं, इस लिये हिन्दी में भी ब्लाग करने की इच्छा हुई । भ्रम-प्रमादादि अनिवार्य होंगे, इस लिये उदार पाठकों की क्षमा प्रार्थना कर रहा हूं।
जय श्री राधे श्याम !!
1 comment:
जगत जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद और मेरी तरफ से बहुत बहुत शुभकामनाये इस अलौकिक ब्लॉग के प्रकाशन के लिए....
श्री राधा श्यामसुन्दर जी की कृपा आप पर हमेशा बरसती रहे.....
!! जय जय श्री राधे श्याम !!
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