वृन्दावन, नंदगाँव, बरसाना, ये वो जगह है जहाँ पर श्री कृष्ण-राधा के अलावा कुछ भी नहीं है। गत पांच दिनों में से चार दिन इन्ही के सानिध्य में गुजरे।
राधा कभी थी या नहीं, लेकिन आज इन स्थानों के चप्पे चप्पे पर राधा ही राधा है। बहती हवा राधा राधा करके कान के पास से उसके होने का अहसास करवाती है। दीवारों पर राधा, श्री राधा लिखा हुआ है। एक रिक्शा वाला भी घंटी नहीं बजाता, राधे राधे बोलकर राहगीरों को रास्ता छोड़ने को कहता है।
वृन्दावन में ५५०० मन्दिर हैं। सब के सब राधा कृष्ण के। बांके बिहारी का मन्दिर, कोई समय ऐसा नहीं जब भीड़ ना होती हो। मन्दिर में आते ही मन निर्मल हो जाता है। आंखों के सामने, मन में केवल होता है बांके बिहारी। रास बिहारी मन्दिर। मन्दिर में चार शतक पुरानी मूर्तियाँ हैं। मगर ऐसा लगता है जैसे आज ही उनको घडा गया हो। मन्दिर का रूप रंग देखते देखते मन नहीं भरता।
श्री रंगराज का मन्दिर। मन्दिर में सोने की मूर्तियाँ, उनके सोने के वाहन, सोने के गरुड़ खंभ। क्या कहने! गोवर्धन की परिकर्मा। लोगों की आस्था को नमन करने के अलावा कुछ करने को जी नहीं हुआ। वहां के लोग कहते हैं। वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना दूध दही का खाना। इस क्षेत्र में ताली बजाकर हंसने का भी बहुत महत्व है। हर किसी से सुनने को मिल जाएगा-जो वृन्दावन में हँसे,उसका घर सुख से बसे। जो वृन्दावन में roye वो अपने नैना खोये।
वहां मधुवन है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ श्री कृष्ण गोपियों के संग रास रचाया करते थे। अब भी ऐसा होता है। इसलिए मधुवन में रात को किसी को भी रुकने नही दिया जाता। बाकायदा ढूंढ़ ढूंढ़ कर सबको वन से बहार निकल दिया जाता है।
वृन्दावन में बंदरों का बहुत बोलबाला है। लेकिन आप उनके सामने राधे राधे बोलोगे तो बन्दर चुपचाप आपके निकट से चला जाएगा। इन बंदरों को चश्मा और पर्स बहुत पसंद हैं। पलक झपकते ही आपका चश्मा उतार लेंगें। इसलिए जगह जगह लिखा हुआ है कि चश्मा और पर्स संभाल कर रखें।
यहाँ एक मन्दिर है इस्कोन। मन्दिर में कैमरा मोबाइल फ़ोन तक नहीं ले जा सकते। मन्दिर के अन्दर आरती के समय जब "हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" के स्वर गूंजते हैं तो हर कोई अपने आप ही झुमने को मजबूर हो जाता है। कृष्ण नाम की ऐसी मस्ती आती है की मन्दिर से जाने को जी नहीं करता।
मथुरा तो है ही कृष्ण की जन्म स्थली। जन्म स्थली पर सी आरपीएफ की चौकसी है। सब कुछ देखने लायक। चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। अब उस व्यक्ति के बारे जिसकी भावना के चलते हम इन स्थानों के दर्शन कर सके। उनका नाम हैं श्री मारुती नंदन शास्त्री। कथा वाचक हैं, मुझ से स्नेह करतें हैं। उनका कोई आयोजन था। उन्होंने स्नेह से बुलाया और हम कच्चे धागे से बंधे चले गए। कहतें हैं कि वृन्दावन में किसी ना किसी बहाने से ही आना होता है। अगर आप सीधे वृन्दावन आने को प्रोग्राम बनाओगे तो आना सम्भव नही होता। इसलिए शास्त्री जी को धन्यवाद जिनके कारन हम प्रेम की नगरी में आ सके।
प्रस्तुतकर्ता नारदमुनि पर
Friday, January 1, 2010
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