श्रीकृष्ण जन्मभूमि में 20 और द्वारिकाधीश में 50 फीसदी श्रद्धालु कम
मथुरा (DJ, May 19, 2010) । प्रभु के अंश से प्रकाशित सूर्य नारायण का तेज श्रद्धालुओं के लिये कहर बन गया है। संकल्प पूरा करने की शपथ लेने, समर्पण एवं सुविधा से परिपूर्ण भक्तों को छोड़कर मंदिरों में कम ही दर्शनार्थी पहुंच रहे हैं। कृत्रिम विद्युत का अभाव तथा शासन-प्रशासन की अनदेखी भी भक्तों और भगवान के बीच की दूरी बढ़ा रही है। यश, कीर्ति, दया एवं वंश वृद्धि करने में समर्थ ईश्वर एवं माता के पुजारी भी भक्त समाज का इंतजार करने को विवश हो गये हैं।
वैशाख की गर्मी में यात्रियों ने अपने पांव कन्हैया की जन्मस्थली एवं क्रीड़ा स्थली की ओर बढ़ने से रोक लिये हैं। नतीजतन पुरुषोत्तम मास में यहां नजर आई यात्रियों की भीड़ दुकानदारों के साथ ही तीर्थ पुरोहितों के लिए सपना बनकर रह गई है।
विश्व ख्यात द्वारिकाधीश एवं श्रीकृष्ण जन्म भूमि जैसे देवालय भी गरमी की मार से नहीं बचे हैं। द्वारिकाधीश मंदिर के प्रबंध निरीक्षक दीनानाथ शर्मा ने बताया कि गर्मी की वजह से करीब पचास प्रतिशत दर्शनार्थी कम हो गये हैं, जबकि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा का कहना है कि 15 से 20 प्रतिशत श्रद्धालु कम हो गये हैं।
पानी के लिए रतजगा तीन फीट उतर गया है भूमिगत जल स्तर
मथुरा। अभी वैशाख की गर्मी है, ज्येष्ठ और आषाढ़ बाकी हैं, लेकिन 45 से 46 डिग्री का तापमान जमीन के अंदर के पानी का भी काल बन गया है। इससे शहर में अब तक तीन फीट पानी उतर चुका है। जल निगम इस तथ्य को स्वीकार कर रहा है। इससे तमाम सार्वजनिक एवं निजी बोरिंग फेल हो गई हैं। नतीजतन शहर में पेयजल के लिए मारामारी मची हुई। तमाम बस्तियों की महिलाओं की नींद इसके इंतजाम में जाया हो रही है। नगर पालिका के जलकल विभाग के 86 नलकूप इस समय शहर में चालू अवस्था में बताए गए हैं। नलकूपों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ी है, लेकिन विद्युत अनापूर्ति, वोल्टेज में उतार-चढ़ाव के कारण नलकूप प्रेशर से पानी नहीं निकाल पा रहे। इस बीच ठेक नारनौल के नलकूप की मोटर बुधवार को बर्स्ट हो गयी, इससे वहां पेयजल संकट खड़ा हो गया है, जबकि बहादुर पुरा की बोरिंग दो दिन से पानी नहीं उगल रही है। मानसून में विलंब होने पर स्थिति और भी भयावह हो सकती है।
भरे तालाबों में नहीं मिला पानी
मथुरा (DJ, May 19, 2010) । सिंचाई विभाग के अफसरों का झूठ आखिरकार पकड़ में आ ही गया। भीषण गर्मी में तालाबों को भरने की सूची जिलाधिकारी को देकर सिंचाई विभाग के अधिकारी अपने ही बनाये जाल में बुरी तरह से फंस गए। डीएम के निर्देश पर जब खंड विकास अधिकारी और उनकी टीमें गांवों की तरफ दौड़ीं तो भरे बताये गये तालाब भी सूखे मिले। हालात यह हैं कि किसी तालाब में पानी तली में आ गया है तो कहीं गांव की नालियों का पानी भरा हुआ है। मजबूरी में पशुपालक इन्हीं तालाबों में पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए छोड़ रहे हैं।
नहरों से जिले के 253 तालाबों को भरने का लक्ष्य सिंचाई विभाग के अपर खंड आगरा कैनाल, लोअर खंड तृतीय आगरा कैनाल और निचली मांट ब्रांच खंड गंगा नहर को दिया गया था। तीनों खंड तालाब भरवाने के लक्ष्य को अभी तक पूरा नहीं कर सके हैं। अपर खंड 84 तालाबों में से 63, लोअर खंड 94 में से 80 और मांट ब्रांच 74 में से 23 तालाब में ही पानी पहुंचा सका।
अपर खुर्जा ने एक तालाब भरवाया। गत दिवस तहसील दिवस में जब तालाबों को न भरने की शिकायत जिलाधिकारी दिनेश चन्द्र शुक्ला को मिली तो उन्होंने सत्यता का पता करने के लिए सिंचाई विभाग के अधिकारियों से सूची हासिल कर ली। बताया गया है कि सूची के आधार पर तालाबों की सत्यता का पता करने के लिए खंड विकास अधिकारियों को लगा दिया गया। बुधवार की दोपहर तक ब्लॉक मथुरा, नंदगांव और फरह के खंड विकास अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट जिला विकास अधिकारी रामधनी राम को सौंप दी। रिपोर्ट के मुताबिक सिंचाई विभाग ने ब्लॉक मथुरा में दस तालाबों को भरवाने का दावा किया था, लेकिन गांव तोष, खामनी और वाटी के तालाब सूखे मिले। ब्लॉक नंदगांव में दस तालाब भरने की सूची दी गई थी, लेकिन सात तालाब नहीं भरे गए। बताया गया है कि गढ़ी बरवारी और नंदगांव के पांच तालाब मनिहारी कुंड, आरेश्वर मंदिर, विमल कुंड को भरवाया ही नहीं गया। गांव बृजवारी के तालाब को भरवाने की फर्जी रिपोर्ट पेश की गई। इस कुंड में पानी तो था, लेकिन इसको सिंचाई विभाग ने नहीं भरवाया। फरह ब्लॉक में 19 तालाब भरवाने का दावा किया गया, लेकिन जांच में पाया गया कि 19 तालाबों में पानी ही नहीं है। जिला विकास अधिकारी रामधनी राम ने बताया कि अभी तीन ही विकास खंडों की रिपोर्ट उनको मिली है। सभी विकास खंडों की रिपोर्ट प्राप्त होते ही जिलाधिकारी को सौंप दी जाएगी। इधर सिंचाई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आगरा कैनाल से अप्रैल में ही तालाब भरवाए गए थे, लेकिन भीषण गर्मी में पानी कम हो गया। इसके बाद नहर तीन सप्ताह तक बंद रही। इससे पूरे तालाब नहीं भरे जा सके। निचली मांट ब्रांच खंड के अधिकारियों का कहना है कि नहर में पानी ही नहीं है। पानी की कमी से तालाब नहीं भरे जा रहे हैं।
पारे की आग में कि सानों की उम्मीद खाक
मथुरा (May 19, 2010) । गर्मी दिनरोज बढ़ती ही जा रही है। इसका असर इंसान तो क्या फसलों पर भी पड़ रहा है। किसान उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार तरकारी का उत्पादन शायद अच्छा होगा। लेकिन पारे ने उनके अरमानों को खाक कर दिया। स्थिति ये है कि खरबूज तरबूज आसमान से गिर रही आग से झुलस रहे हैं तो खीरा और कद्दू को रोगों ने घेर लिया है। सब्जियों के उत्पादन में भी गिरावट आ गई है। किसान बड़ा घाटा होने की बात कह रहे हैं।
यमुना की खादर भूमि में किसान सब्जियों की खेती के साथ-साथ खरबूज और तरबूज की भी खेती करते हैं। गांव छिनपराई से लेकर गढ़ाया लतीफपुर तक करीब तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इनकी खेती की जा रही है। इस बार तापमान में हुई अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी ने किसानों की उम्मीदों को जला कर राख कर दिया। तापमान 43 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच चल रहा है। तापमान में बढ़ोत्तरी होने से परागण करने वाले कीट परागण नहीं कर पा रहे हैं। परागण प्रभावित होने से फल बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। इस स्थिति में उत्पादन में गिरावट आ गई है और किसानों को मिलने वाला मुनाफा नहीं मिल पा रहा है।
किसान इस बार भारी घाटा होने की बात कह रहे हैं। जहांगीरपुर के किसान श्याम सुंदर सिंह ने बताया कि खरबूज तरबूज लगाने के लिए एक गड्ढे की खुदाई पर करीब सत्तर से अस्सी रुपये का खर्च आया। एक गड्ढे में लगने वाली बेल पर छह सात फल आते हैं। स्थिति यह है कि बेल पर फूल तो आता है, लेकिन अधिक तापमान होने से फूल मुरझा कर टपक रहा है। इससे बेल पर फलों की संख्या में कमी आ गई है। बेगमपुर के किसान शिशुपाल सिंह भी नुकसान होने की बात बढ़ा हुआ तापमान बता रहे हैं। किसान ने बताया कि पूरी लागत लगाने के बाद भी भरपूर उत्पादन नहीं हो पा रहा है।
किसान महीपाल सिंह ने बताया कि इस बार उत्पादन में आई कमी से उनको खेती में घाटा ही नजर आ रहा है। किसानों ने बताया कि तापमान अधिक होने से अधिक सिंचाई करनी पड़ रही है। पिछले सालों में एक सप्ताह में दो बार सिंचाई करने पर ही काम चल जाता था, लेकिन इस बार हर दूसरे तीसरे दिन सिंचाई करनी पड़ रही है। किसानों ने बताया कि खरबूज, तरबूज, खीरा, कद्दू पर रोग आ गया। फल बनता है, लेकिन कीड़ा उसे खा जाता है। दवाओं का भी प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन रोग पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। किसानों ने बताया कि बाजार में खरबूज, तरबूज, खीरा, कद्दू के भाव भी कम मिल रहे हैं। इस स्थिति में फसल घाटे का सौदा ही साबित हो रही है।
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