Saturday, May 22, 2010

वृन्दावन के लुप्त होते वन और उपवन — एक गम्भीर समस्या

आचार्य नरेश नारायण

वृन्दावन (वृन्दावन इन्साफ, May 11, 2010) : विश्व प्रसिद्ध भगवान् श्री-कृष्ण की पावन क्रीडा स्थली श्री धाम वृन्दावन आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है । किंतु सरकारी उदासीनता, नवागत साधु-सन्तों का कोरा प्रदर्शन श्रीधाम वृन्दावन के मूल स्वरूप को नष्ट करने में सहयोगी बना हुआ है । परिणाम स्वरूप बन के रूप में प्रसिद्ध वृन्दावन आज वन, वाटिका, कुंज आदि से विहीन होता जा रहा है । भगवान् की सेवा के लिये तुलसी दल भी प्राप्त नहीं हो रहे हैं ।

जब कि धर्म ग्रन्थों और रसिक सन्तों ने वृन्दावन के प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्भुत वर्णन अनेक स्थानों पर किया है । जो वृन्दावन के रमणीय स्वरूप को प्रस्तुत करते हैं --

ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं ।
हंस सुता को सुन्दर कलरव,
औ तरु अर की छांहीं ॥ (सुरसागर)

रे मन वृन्दा विपिन निहार ।
यद्यपि मिलै कोटि चिंतामणि
तदपि न हाथ पसार ॥ (युगलशतक)

एहि विधि क्रीडत गोकुल में हरि, निज वृन्दावन धाम ।
मधुवन और कुमुदवन सुन्दर बहुलवन अभिराम ।
लौहवन मांट बेलवन सुन्दर, भद्र बृहद्वन गाम ॥(सुरसारावाली)

वृन्दा शब्द का अर्थ तुलसी देवी से है, वन शब्द का अर्थ उसकी सघनता से है अर्थात् जहां पर तुलसी वृक्षों की प्रचुरता हो उस स्थान को वृन्दावन कहा गया है । आज भगवान् श्री-कृष्ण के प्रिय वृन्दावन में तुलसी का अभाव हो गया है ! यह महान् चिन्ता का विषय है । वृन्दावन में प्रत्येक मन्दिर के साथ भगवान् का बगीचा हुआ करता था, किन्तु आज वे प्रायः समाप्त हो चुके हैं । अतः तुलसी वृक्षों का अभाव होता जा रहा है । इसके साथ-साथ ही इसका दूसरा मुख्य कारण ग्रीष्म ऋतु और पानी का अभाव भी है । वृन्दावन में वन रहे, अनेकों मठ-मन्दिर, गेस्ट हाउस और सरकारी योजनाएं भी वृन्दावन के वृक्षों और वनों को समाप्त करने में अपनी प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं ।

अगर हमें वृन्दावन शब्द के अर्थ को जाग्रत रखना है, तो यहां के वन और उपवनों को भी जिन्दा रखना होगा । इस कार्य में प्रत्येक ब्रजवासी को और वृन्दावन के प्रेमी भक्तों को संकल्प के साथ योजना बनाकर कार्य करना होगा । तभी वृन्दावन के मूल स्वरूप को सुरक्षित रखा जा सकेगा । वृन्दावन का वैभव श्रीमद्भागवत आदि ग्रन्थों मे प्रचुरता से पढा जा सकता है ।

आज वृन्दावन के प्रायः मन्दिरों में सूखी तुलसी से भगवान् की सेवा हो रही है ऐसा क्यों ? वृन्दावन में मन्दिरों की सेवा के लिये बाहर से तुलसी मंगानी पड रही है । क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है ? इस ओर हम सभी को गंभीरता से कार्य करना होगा ॥

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