Thursday, May 27, 2010

किशोर वन का पुनर्स्थापन


पर्यावरण विरासत की संरक्षण हेतु पवित्र कुंजों के संरक्षण और पुनरुद्धार परियोजना के माध्यम से वृंदावन में एक प्रयोगात्मक परियोजना

पृष्ठभूमि वृन्दावन, प्रकृति के साथ उत्तर प्रदेश का संबंध हजारो वर्षों से है। यह एक तीर्थ स्थान इसलिए है, क्योंकि यहां श्री कृष्ण भगवान ने वृक्षों, पहाड़ों, नदियों और पशुओं की पूजा तो की ही थी, साथ ही साथ अपने परिवार, मित्रों और भक्तों को भी उनकी पूजा करना सिखाया था। वृंदावन का नाम ही पूजनीय तुलसी (वृंदा) के पौधे और देवी के नाम से आधारित है, जिसका इस वन में निवास है।

पूरा वृंदावन शहर, और ब्रज मण्डल, जिसका वह भाग है, किसी समय पावन कुंजों और वनों के विशाल क्षेत्रों से भरा हुआ था। आज, अल्हड़ विकास और कुप्रबंधन की वजह से ये पवित्र हरे स्थान सिकुड़ कर न्यूनतम स्तर पर पहुंच गये हैं। केवल मुट्ठी-भर गिने-चुने स्थान बचे हैं और ये भी पानी कि कमी और बंदरों की बढ़ती संख्या से ग्रस्त हैं, जो कि शहर के आपे से बाहर होती जा रही हैं।

पवित्र कुंजों के संरक्षण और पुनरुद्धार परियोजना का यह लक्ष्य है कि पर्यावरण की धरोहर के इन अंतिम बुर्जों को बचाया जाए, और इस अनुभव को ब्रज में होनेवाले बृहत्कार्यों के लिए एक प्रयोगात्मक परियोजना माना जाए।

भारतीय लोगों के विचार में वृंदावन एक मनोरम अलौकिक छोटा सा शहर है, जो यमुना नदी के निकट एक महिमाशाली वन में स्थित है, जिसके पास हरी-हरी घास के खुले मैदान हैं जहां गाएं चरती हैं। यह दृश्य उन कहानियों की पृष्ठभूमि बन जाता है, जिनमें बाल कृष्ण ने क्रीड़ा और महान कार्य किये। ये बहुचर्चित कहानियां आजकल कार्टून के रूप में टेलीविज़न पर दर्शित हो रही हैं, जो इस समय भारत के बच्चों की रुचि में दूसरे नम्बर पर है।

यह भावनात्मक दृश्य पहले ही भागवत पुराण, सूरदास, रूप गोस्वामी, और जयदेव जैसे महापुरुषों की अनंत भक्ति रचनाओं में पाया जाता है, और ‘वृंदावन’ का नाम लेते ही जैसे आंखों के सामने आ जाता है। इसके अलावा, भगवान कृष्ण के निवास स्थान माने जाने के कारण इसे तीर्थ-स्थान माना जाता है। तीर्थ-यात्री यहां हज़ारों सालों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी आते रहे हैं, केवल इसलिए कि वह पर्यावरण के उस परिवेश का अनुभव करना चाहते हैं जिससे भगवान कृष्ण के वृंदावन जीवन का आभास हो सके और उनमें भक्ति-भाव उत्पन्न हो सके।

लेकिन अब वृंदावन जाकर जो दृश्य देखने को मिलता है, वह है भीड़ से भरी सड़कों पर कचरे के ठोस एक भूलभुलैयां। दुःख की बात तो यह है कि यहां ऐसे कुछ नहीं है जो कि “वन” कहलाया जा सके। कुछ ही पेड़ हैं, जो कि विकास कार्य के नाम पर किसी भी समय काटे जा सकते हैं। सड़कें चौड़ी की जा रही हैं, नई इमारतों का निर्माण हो रहा है, जिसका मतलब है अधिक लोग, अधिक मोटरागाड़ियां, अधिक कूड़ा, और हरित क्षेत्रों एवं पानी का अभाव। तीर्थ यात्रा आर्थिक विकास को बढावा देती है, और आर्थिक विकास तीर्थ को, लेकिन वृंदावन में आर्थिक विकास ऐसी टेढ़ी चाल चल रहा है कि वह उसी धरोहर का विनाश करने की धमकी दे रहा है, जिस वजह से वृंदावन का नाम है।

पर्यावरण के इस तीव्र नुकसान की वजह से लोगों का नाता इस तीर्थ-स्थान की अलौकिकता से टूटता जा रहा है। पवित्र कुंजों के संरक्षण और पुनरुद्धार परियोजना द्वारा इस नाते को पुनः जोड़ने से हम आम जनता में जागरूकता बढ़ा सकते हैं कि वह अपने पर्यावरण का संरक्षण कर सके।

ये कुण्ड, वन, और यमुना जी बृज-वृंदावन की धरोहर हैं, जिन पर अत्याचारी आक्रमण हो रहा है। पारंपरिक वर्षा जल संचयन सूखे जा रहे हैं, वन लुप्त होते जा रहे हैं, और यमुना तो केवल बीमारी फैलाने और पनपने का एक गंदा नाला बन कर रह गई है। ब्रज धाम की पावन भूमि जो करोड़ों भक्तों के मार्मिक वन्दनाओं में वास करती है, जल्द ही हमेशा हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी, यदि कदम न उठाए जाए।

पवित्र कुंजों के संरक्षण और पुनरुद्धार परियोजना

पर्यावरण की धरोहर का पुनरुद्धार और भविष्य के लिए आशा की किरण॒ धरोहर उस संस्कृतिक विरासत को कहते हैं जो हम अपने भूतकाल से पाते हैं और अपने भविष्य को देते हैं। भारतीय सांस्कृतिक विरासत अपने आप में अनूठी इसलिए है कि वह प्रकृति का सम्मान करती है और यह मानती है कि संसार के हर जीव-जन्तु का इस प्रकृति में एक विशेष स्थान है। प्रकृति को एक मां के रूप में देखा जाता है जो भिन्न-भिन्न परम्पराओं, रीति-रिवाज़ओं और जीवन के हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष होता है -- ब्रज-मंडल में तो विशेषतः ऐसा आम देखने को मिलता है।









ब्रज में ही नहीं, बल्कि भारत में कई और जगह (यहां तक कि विदेशों में भी) श्री कृष्ण ही वह महत्वपूर्ण कड़ी हैं जो लोगों को उनके पर्यावरण से जोड़ते हैं। हमारे पवित्र ग्रंथों में कई ऐसे उदाहरण हैं जिससे हमें पता चलता है कि कृष्ण के जीवन काल में प्रकृति और पर्यावरण कितना मायने रखते थे। श्रीमद् भागवत में श्रीकृष्ण अपने पिता नन्दा महाराज से कहते हैं, “न तो यह शहर, न ये गांव, न उनमें बने घर, या खेत हमारे हैं। हम तो वनों के निवासी हैं, और हम सदा वनों और पहाड़ों में ही वास करेंगे।

यही वह धरोहर है जिसका हम पुनरुद्धार करने की इच्छा रखते हैं। लोगों को ब्रज के इन कुंजों, उद्यानों और वनों की रक्षा करने का प्रशिक्षण दिया जायेगा, और हम पुनः उस सांस्कृतिक धरोहर से पहचान जोड़ सकेंगे जो कि पर्यटन से जल्दी पैसा

कमाने की होड़ में हम से लुप्त हो गई है। यदि यह अल्हड़ विकास की होड़ रोकी न गई तो उद्यानों के साथा-साथ पर्यटन और तीर्थ दोनों लुप्त हो जाएंगे। अभी ही वह समय है जब हम इस को पलट सकते हैं, और लोगों को दिखा सकते हैं कि अंततः दूरदर्शिता तोड़अ-फ़ोड़ में नहीं, बल्कि संरक्षण में है।

किशोर वन का पुनर्स्थापन पवित्र कुंजों के संरक्षण की एक प्रयोगात्मक परियोजना

हमारी प्रयोगात्मक परियोजना के लिए सबसे पहले किशोर वन का चुना जाना साफ़ ज़ाहिर है। वृंदावन के कई पावन कुंजों में से केवल तीन ही आजकल मौजूद हैं। ये हैं निधिवन, सेवाकुंज, और किशोर वन। किशोर वन इन तीनों में से सब से छोटा है, और इसलिए हमारी परियोजना प्रारम्भ करने के लिए उत्तम है।









भूतकाल में रचित कृष्ण की लीलाओं के प्रमाण के तौर पर मौजूद किशोर वन और अन्य दोनो कुंज, जल्दि ही लुप्त हो जाने के ख़तरे में हैं। माना जाता है कि यही वह स्थान हैं जहां कृष्ण ने अपनी गोपियों के संग बांसुरी बजाते हुए रास नृत्य किया था। यह भी माना जाता है कि आज भी ऐसा होता चला आ रहा है, इसलिए किसी को सूर्यास्त के पश्चात इन कुंजों में जाने कि अनुमति नहीं होती, कहीं दिव्य गतिविधियों में बाधा न बन पाए।

इस समय, वृंदावन के कुंजों में केवल कुछ बिखरे हुए बौना झाड़ियों के झुर्मठ हैं। पवित्र कुंजों के संरक्षण की एक प्रयोगात्मक परियोजना के अंतरगत हमारी यह कोशिश रहेगी कि हम इन कुंजों को लोकप्रिय कल्पना और पवित्र ग्रंथों में कथित महिमा के पुनः अधिकारी बनाएंगे, और यह हम नीचे उल्लिखित उद्देश्यों को पूरा करने के द्वारा करेंगे।

उद्देश्य

पहला कदम : तैयारी
१. स्थानीय वनस्पतियों एवं पशुवर्ग का सर्वे करना
२. पावन कुंज प्रबंधन समिति का निर्माण करना
३. पावन कुंज प्रबंधन कार्यशाला करवाना

दूसरा कदम : पुनरुद्धार
४. ब्रज वृन्दावन के विशिष्ट वृक्ष उगाने की नर्सरी का विकास करना
५. कुंज में गोलाकार पथ का निर्माण करना
६. किशोर वन में छोटे-छोटे स्पीकर द्वारा बांसुरी वादन लोगों को सुनाना जिस से श्री कृष्ण के मौजूद होने का अहसास सबको होता रहे।
७. वृक्षों को बंदरों से बचाने के लिए जालियां लगवाना
८. आगन्तुकों के लिए कुंज के उत्तम उपयोग करने के लिए एक पुस्तिका का उत्पादन करना

तीसरा कदम : रखरखाव, सामुदायिक भागीदारी और शिक्षा

९. एक कार्यशाला समुदाय की जरूरत का आकलन करने के लिए व्यवस्थित करना
१०. स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर, पवित्र कुंजों की सुरक्षा के महत्त्व और संरक्षण पर केन्द्रित शिक्षा कार्यक्रम आयोजित करना
११.बागान ड्राइव का प्रयोजन करना जिसमें स्कूली बच्चों में भाग लेंगे

चौथा कदम : आगे के लिए तैयारी

१२. ब्रज के सभी पावन कुंजों का गमन करवाने के लिए २ टूर-गाइड की पहचान और नियुक्ति करना
१३. ब्रज के सभी पावन कुंजों की पहचान करना

Download in PDF.

किशोरवन की इदानींतन रेगिस्थान की सी परिस्थिति

No comments: