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अनन्य भक्तों की मंडली नगर के मुख्य बाजारों से होकर बढ़ रही थी। भजन मंडली के मार्ग में पड़ने वाले घरों के लोग, दुकानदार और राहगीर सांसे रोके यह नजारा देख रहे थे।
यूं ऐसा दृश्य भारत के प्राय: सभी नगरों में देखा जा सकता है। लेकिन यहां एक बड़ा फर्क यह है कि यहां जो लोग मंडली में शामिल है वे अन्यत्र दर्शकों में शुमार होते और जो यहां दर्शक बने बैठे है वे अन्यत्र निश्चित रूप से मंडली के सदस्य होते।
भक्ति की यह उल्टी गंगा भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली वृंदावन में बहती है जहां की अधीश्वरी उनकी शक्ति स्वरूपा राधारानी है। स्वनामधन्य श्रीमद् एसी भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृत संघ इस्कान की यह बहुत बड़ी उपलब्धि है कि उसने सात समंदर पार के गोरे जन समुदाय को भगवान कृष्ण की भक्ति से ऐसा जोड़ा कि भारत के लोग ही इसमें उनसे बहुत पीछे रह गए।
इस्कान के संपर्क में आने पर जब गोरों को लगा कि असली धर्म तो कृष्ण भक्ति में निहित है तो उन्होंने सब कु छ त्यागकर कृष्ण भक्ति की राह पकड़ ली। भारत में धर्मभीरू लोग अंदर से चाहने के बावजूद खुलकर धार्मिक इसलिए नहीं बनना चाहते कि इससे कहीं उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर दाग न लग जाए। ऐसे लोगों के लिए ये विदेशी कृष्ण भक्त एक आदर्श पेश हैं। धोती-कुर्ता एवं कंठी माला पहने तिलक लगाए तथा जाप के लिए हाथ में गोमुखी माला लिए इन नवभक्तों को वृंदावन की कुंज गलियों में नंगे पैर घूमते-फिरते करते कभी भी देखा जा सकता है।
सिर भले ही मुड़ा हो लेकिन शास्त्र सम्मत गाय के खुर के समान मोटी चुटिया उनके हिन्दू भक्त होने का पूरा प्रमाण पेश करती है। महिलाएं साड़ी व अंगरखा पहने रहती है। साड़ी तथा पूरे दो मीटर कपड़े के अंगरखा से उनका तन पूरी तरह से ढका रहता है। छोटी भक्त कन्याओं का भी यही पहनावा है। विडंबना यह है कि इन विदेशी भक्तों पर पर नजर पड़ते ही स्थानीय दुकानदार हरि बोल, हरि बोल का उच्चारण करते हुए उन्हें अपना माल बेचने की जुगत में लग जाते है। चूंकि बात हरि बोल से शुरू हुई है अत: वे दुकानदारों की बात सुन तो लेते हैं लेकिन वे इतने नादान भी नहीं है कि अपने साथ हो रही चालाकी को ताड़ न सके व दुकानदारों के झांसे में आ जाएं।
एक ओर हर कोई आज आज अपनी लोकप्रियता के लिए संघर्षरत है वहीं वृंदावन में रह रहे ये गोरे अपने प्रचार के भी इच्छुक नहीं है। ये विदेशी भक्त अपना मान नहीं चाहते और सबके मान्य होने के बावजूद दूसरों को ही मान देते है। ये ही गुण इन भक्तों ने भी आत्मसात कर लिए हैं। मीडिया से बात करने से वे परहेज ही करते हैं। कहते है कि इससे उनकी भक्ति प्रभावित होती है और अनवरत चलने वाले उनके मंत्रजाप का क्रम टूटता है। ये भक्त अपना परिचयसमेत कुछ भी बताने से इन्कार कर देते हैं व केवल कुछ ही भक्त अपने नाम व नागरिकता उजागर किए बगैर विशुद्ध कृष्ण भक्ति पर दो चार बातें कहते हैं।
Wednesday, May 26, 2010
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