Wednesday, May 19, 2010

श्री वृन्दावन विकास परियोजना का विरोध


आजकल श्री वृन्दावन विकास परियोजना की ओढ़ में किए जाने वाले काम के बारे में मैं कुछ विरोध प्रकट करना चाहता हूँ। केशीघाट के सामने से जाने वाले यमुना के पानी के बीचों-बीच जो पुल बनाया जा रहा है, वो उस सब को बदल देगा जो करोड़ों हिन्दुओं के लिए पावन है।

जैसे यरूसलम और मक्का अपने-अपने मज़हब के लिए ख़ास मायने रखते हैं, उसी तरह, मथुरा और वृन्दावन हिन्दुओं के धर्म के अडिग प्रतीक हैं। दोनो स्थान पौरानिक गाथाओं, धर्म-कर्म, मान्यताओं और परम्पराओं कि धरोहर हैं।

पर्यटन-स्थानों का विकास करना, ख़ासकर धर्म-पर्यटन को बढ़ावा देना बेशक एक उत्तम कार्य है, किन्तु इस बात को तो ध्यान रखना चाहिए कि उन पावन स्थानों का रूप-रंग बिगड़ने न पाए।

वृन्दावन की कुञ्ज-गलियाँ, नदी और घाट इस स्थान की धरोहर हैं। ये वो जीते जागते नाट्य मंच हैं जहाँ श्री कृष्ण ने अपनी लीलाएँ रची थीं।

केशीघाट पर बनने वाला पुल इस सब को बदल देगा। नदी के बीचों-बीच यातायात को लाकर युगों-युगों की धरोहर को हमेशा के लिए मिटा दिया जायेगा - ऐसा तो दुनिया में आxxxxज तक कभी सुना भी नहीं है। पहले ही परिक्रमा मार्ग ने घाटों को नदी-तट से दूर कर दिया है। यह यातायात से खचमच भरा हवाई-पुल, प्रदूषण के काले बादल तो लायेगा ही, हमारे वृन्दावन के ग्रामीण रूप को ज़बरदस्ती एक घिनौने शहर में बदल देगा और उसके असली चरित्र को सदा के लिए नष्ट कर देगा।

हमें दूसरे स्थानों से भी सीख लेनी चाहिए। हाल ही में, जर्मनी के ड्रेस्डेन शहर को युनेस्को की "धरोहर सूची" से हटा दिया गया - इसलिए कि उन्होंने उस एतिहासिक शहर के निकट एक राजमार्ग का निर्माण कर दिया था। करनाटक प्रदेश के हम्पी नामक तीर्थ में हमारे साथ भी एसा हो चुका है। चाहे युनेस्को माने या न माने, वृनदावन पूरे विश्व की हि नहीं, हमारी सब की धरोहर है।

हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस बेतुकी "विकास" को रोकने में हमारी मदद करें, और सारे गुटों से मिल जुल कर बातचीत शुरु करें जिससे कि हमारे पावन धाम के अनूठे रंग-रूप को बदले बिना तीर्थ-पर्यटन का उचित रूप से विकास किया जा सके।

प्रार्थना करें कि वो दिन कभी न आए जब "राधे-राधे" की गूँज से ऊँची आवाज़ मोटर गाड़ियों के हौर्न की हो।

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