Tuesday, May 25, 2010
हमारा वृन्दावन
हरिद्वार में गङ्गा जी के एक घाट पर--
हमारा वृन्दावन क्या बनेगा यह चिन्तनीय है । ब्रज लीला वनमय लीला है, जिस में राधा कृष्ण और उनके सखा और सखियां यमुना जी के कर्पूर से सूक्ष्म और उज्ज्वल बालुमय किनारों पर नाचा करते थे, उस के स्वच्छ शीतल पानी में जल-विहार किया करते थे, और वन विहार करके प्राकृतिक सौन्दर्य निरंतर अनुभव करते थे । यह वृन्दावन एक कांकरीट जङ्गल बनाकर उसका वही पर्यावरणिक धरोहर, उसका आध्यात्मिक सौन्दर्य और शान्तिमय परिवेश हमेशा के लिये लुप्ता होने की ओर चल दिया है । कोकिल और मयूर की मीठे डाक और संगीत और नहीं सुनता, सिर्फ गाड़ियों का बांपू और हैरान नागरिकों का दिक्कत ।
वर्तमान वृन्दावन क्या हमारा वृन्दावन है, या स्वार्थवादि व्यावसायी और टेक्केदारों का बना हुआ है ? वृन्दावन का स्वरूप नष्ट हो जाए तो, उसका आर्थिक भविष्यत् भी संदिग्ध है ।
इस लिये यह बात ठीक बताई गई थी की आसल विकास भौतिक विकास नहीं है । वृन्दावन का स्वरूप नष्ट न हो, यही हमरी प्रार्थना है ।
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