Monday, August 2, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतं २.९१-९३


Photo by Gopi Dasi.

 विद्योतद्बीजराजात्मक विमल महाज्योतिरानन्दसान्द्रे
श्रीवृन्दाकाननेऽत्यद्भुतमधुरमहाभावसर्वस्वमूर्त्या ।
प्रत्यङ्गोत्सर्पि हैमच्छविरसजलधिश्रीकिशोर्या कयाचित्
कोऽपि श्यामः किशोरोऽद्भुतमधुररसैकात्ममूर्तिश्चकास्ति ॥

विद्योतमान काम बीज स्वरूप विमल महा ज्योति पूर्ण आनन्दघन श्रीवृन्दावन में जो अत्यन्त अद्भुत मधुर महा भाव की सर्वस्व मूर्ति है, और जिस के प्रति अङ्ग से स्वर्ण कान्ति रस समुद्र उच्छलित हो रहा है, ऐसी किसी अनिर्वचनीय श्रीकिशोरी जी के साथ कोई अद्भुत मधुर रसैक मूर्ति श्रीश्यामकिशोर शोभा पा रहा है ॥२.९१॥




विमलकलितबीजज्योतिरेकार्णवान्तः
स्फुरति मधुरमेतद्धाम वृन्दावनाख्यम् ।
तदधि निरवधीनां माधुरीणां धुरीणाव्
अनुसर रतिलोलौ दम्पती गौरनीलौ ॥

विमल सबीज ज्योति पूर्ण समुद्र गर्भ में श्रीवृन्दावन नामक यह धाम स्फुरित हो रहा है । उस में असीम माधुर्य शाली रति लम्पट गौर नील कान्ति विशिष्ट दम्पति का अनुसरण कर ॥२.९२॥




अङ्गादङ्गादनङ्गाकुलितपुलकिताद्गौररोचिस्तरङ्गाः
प्रोत्तुङ्गाः प्रोच्छलन्तः सकलमपि जगन्मण्डलं प्लावयन्ति ।
श्रीराधाया विधायात्मन उरुमधुराभीक्षयैवात्यधीनं
श्यामेन्दुं नित्यवृन्दावनरतिविहृतौ येऽद्भुतांस्तान् स्मरामः ॥

श्रीराधा के अतिमधुर अपाङ्ग विक्षेप बङ्क विलोकन के द्वारा ही श्याम चन्द्र को अपने अति अधीन करके, उसके श्री राधाके कामातुर पुलकित प्रति अङ्ग से जो गौर कान्ति तरङ्ग समूह उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त हुआ चारों ओर व्याप्त होकर सम्पूर्ण जगत् मण्डल को ही प्लावित कर रहा है, उसी नित्य वृन्दावन रति विहार के अद्भुत तरङ्गादि वस्तु समूह का हम स्मरण करते हैं ॥२.९३॥


1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर पोस्ट।आभार।