Tuesday, August 3, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतं २.९४-९६


Gopi Dasi.

वृन्दावननवकुञ्जे रसपुञ्जे खेलदाश्चर्यम् ।
तद्गौरनीलमोहनकिशोरमिथुनं स्मराकुलं स्मरत ॥

रस पुञ्ज वृन्दावन के नवीन कुञ्जों में आश्चर्य भाव से खेलन शील स्मराकुल उन गौर नील कान्ति विशिष्ट मोहन किशोर युगल को स्मरण कर ॥२.९४॥





श्रीवृन्दावनतत्त्वं श्रीराधाकृष्णयोस्तत्त्वम् ।
निजतत्त्वं च सदा स्मर यत् प्रकटितमस्ति गौरचन्द्रेण ॥

श्रीगौरचन्द्र के द्वारा प्रकटित श्रीवृन्दावन तत्त्व, श्रीराधा-कृष्ण तत्त्व, तथा आत्मतत्त्व सदा सर्वदा स्मरण कर ॥२.९५॥




कृष्णानुरागसागरसारेष्वत्यन्तचमत्कारम् ।
विन्दत वृन्दाकाननकुञ्जकुटीवृन्दवन्दनादेव ॥

श्रीवृन्दावन के कुञ्ज कुटीर समूह की वन्दना मात्र से ही श्री कृष्णानुराग सागर का सार भूत अतिचमत्कार प्राप्त कर ॥२.९६॥


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