Tuesday, August 10, 2010

श्रीवृन्दावनमहिमामृतम् ३.१६-१८


श्रीदीनशरणदासबाबाजी महाराजकी समाधि मन्दिर, राधाकुण्ड (Photo from Lake of Flowers).

क्षणाच्छरदुपागमं क्षणत एव वर्षागमं
क्षणात् सुरभिवैभवं क्षणत एव चान्यर्तुमत् ।
सदा जनितकौतुकं किमपि राधिकाकृष्णयोः
स्मर प्रतिपदोल्लसद्रसमयं हि वृन्दावनम् ॥
श्रीवृन्दावन में क्षण क्षण में शरद् आ जाती है, और क्षण में फिर वर्षा आ जाती है, क्षण में वसन्त शोभा देता है, तो क्षण पीछे किसी अन्य ऋतु का आगमन होता है । इस प्रकार सर्वदा श्रीराधा-कृष्ण के किसी न किसी अनिर्वचनीय कौतुक को सम्पादन करने वाले एवं पद पद पर आनन्द विधान करने वाले श्रीवृन्दावन को ही स्मरण कर ॥३.१६॥



विलसत्कदम्बमूलालम्बी संवीतपीतचारुपटः ।
राधां विलोक्य मुरलीं क्वणयन् वृन्दावने हरिर्जयति ॥
कदम्ब वृक्ष के मूल का अवलम्बन लिएय् हुए, पीताम्बर धारी, श्रीराधा का दर्शन करते करते मुरली बजाने वाले, श्रीहरि श्रीवृन्दावन में जय युक्त हो रहे हैं ॥३.१७॥



कालिन्दीपुलिनवने मोहननवकुञ्जमन्दिरद्वारि ।
सह राधयोपविष्टं सरससखीजुष्टमाश्रये कृष्णम् ॥
श्रीयमुना के पुलिन वन में मोहन नवकुञ्ज मन्दिर के द्वार पर श्रीराधा के साथ बैठे हुए एवं रसवती सखियों से सेवित श्री-कृष्ण का मैं आश्च्रय लेता हूं ॥३.१८॥


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