श्रीदीनशरणदासबाबाजी महाराजकी समाधि मन्दिर, राधाकुण्ड (Photo from Lake of Flowers).
क्षणात् सुरभिवैभवं क्षणत एव चान्यर्तुमत् ।
सदा जनितकौतुकं किमपि राधिकाकृष्णयोः
स्मर प्रतिपदोल्लसद्रसमयं हि वृन्दावनम् ॥
श्रीवृन्दावन में क्षण क्षण में शरद् आ जाती है, और क्षण में फिर वर्षा आ जाती है, क्षण में वसन्त शोभा देता है, तो क्षण पीछे किसी अन्य ऋतु का आगमन होता है । इस प्रकार सर्वदा श्रीराधा-कृष्ण के किसी न किसी अनिर्वचनीय कौतुक को सम्पादन करने वाले एवं पद पद पर आनन्द विधान करने वाले श्रीवृन्दावन को ही स्मरण कर ॥३.१६॥
राधां विलोक्य मुरलीं क्वणयन् वृन्दावने हरिर्जयति ॥
कदम्ब वृक्ष के मूल का अवलम्बन लिएय् हुए, पीताम्बर धारी, श्रीराधा का दर्शन करते करते मुरली बजाने वाले, श्रीहरि श्रीवृन्दावन में जय युक्त हो रहे हैं ॥३.१७॥
सह राधयोपविष्टं सरससखीजुष्टमाश्रये कृष्णम् ॥
श्रीयमुना के पुलिन वन में मोहन नवकुञ्ज मन्दिर के द्वार पर श्रीराधा के साथ बैठे हुए एवं रसवती सखियों से सेवित श्री-कृष्ण का मैं आश्च्रय लेता हूं ॥३.१८॥
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