Sunday, August 8, 2010

श्रीवृन्दावनमहिमामृतम् ३.१०-१२


प्रेमसरोवर, नन्दगांव (Photo from Lake of Flowers).

स्वच्छप्रोज्ज्वलदिव्यवासकुसुमाद्यापूर्णं संशीतल
च्छायाभाजि तले नवक्षितिरुहां संक्रीडसुप्तासिकम् ।
कुञ्जे कुञ्ज उदारकेलिकुसुमोल्लोचास्तरे पानका-
द्याढ्ये यस्य तदद्भुतं द्वयमहस्तत् पश्य वृन्दावने ॥
जिस श्रीवृन्दावन के स्वच्छ परम उज्ज्वल दिव्य वस्त्र रूप कुसुमादि से परिपूर्ण सुशीतल छाया युक्त नवीन वृक्षों के नीचे दोनों सुन्दर क्रीड़ा कर निद्रित भाव से विराजते हैं, एवं जिसकी कुसुम रूप चन्द्रातपों से आश्छाचित विविध मधुभरी कुञ्ज कुञ्ज में उदार केलि परायण अद्भुत श्रीयुगलकिशोर अवस्थित हैं, उसी श्रीवृन्दावन में ज्योतिर्मय उन युगलकिशोर का दर्शन कर ॥३.१०॥



त्रैगुण्यातीतपूर्णोज्ज्वलविमलमहाकामबीजात्मदिव्य-
ज्योतिःस्वानन्दसिन्धौ किमपि सुमधुरं द्वीपमाश्चर्यमस्ति ।
तस्मिन् वृन्दावनं तद्रहसि रसभरैर्मञ्जुला कुञ्जबाटी
काचित्तत्रातिभावाद्भज सुरतिनिधी राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥
सत-रज-तम – इन तीनों गुणों से परे अत्यन्त उज्ज्वल शुद्ध महाकाम बीज स्वरूप दिव्य ज्योति के स्वानन्द निजानन्द समुद्र में कोई एक अति मधुर आश्चर्यजनक द्वीप है, उसमें श्रीवृन्दावन अवस्थित है, उस श्रीवृन्दावन के गुप्त स्थान में रसपूर्ण कोई एक मनोहर कुञ्जवाटी विद्यमान है, वहां सुरति निधि श्रीराधिका कृष्ण चन्द्रका अति भावपूर्वक भजन कर ॥३.११॥



दृष्ट्वा दृष्ट्वा राधिकाकृष्णयोस्तद्दिव्यं रूपं दिव्यकन्दर्पकेलिम् ।
श्रुत्वा श्रुत्वा शीतपीयूषवाणीं वृन्दारण्ये किं रसाब्धिं विगाहे ॥
श्रीराधा-कृष्ण के उस दिव्य रूप एवं दिव्य कन्दर्प केलि का दर्शन करते करते तथा उनकी सुशीतल अमृतवाणी को सुन सुन कर इस श्रीवृन्दावन में क्या कभी मैं भी रस के समुद्र में अवगाहन कर सकूंगा ? ॥३.१२॥


No comments: