श्री श्री मदनमोहन मन्दिर का प्राङ्गण (Photo from Lake of Flowers).
लोकं वालोकयन्तः कमपि नतिकृतः कर्हिचिद्यद्दिशेऽपि ।
यन्नामाप्येकवारं शुभमभिदधतः कीकटादौ च मृत्वा
प्राप्स्यन्त्येवाञ्जसा तन् मुनिवर महितं धाम ये केचिदेव ॥
जिन्होंने जीवन में एकबार भी श्रीवृन्दावन के फूल को सूंघा है, वहां की वायु का स्पर्श किया है, उस श्रीवृन्दावनके स्वरूप का या वहां के किसी व्यक्ति का दर्शन किया है, उसका मङ्गलमय मधुर नाम एक बार भी उच्चारण किया है, वे कीकट (विहार) आदि देश में शरीर त्यागने पर भी शीघ्र ही श्रेष्ठ मुनिगण जिस की वन्दना करते हैं, इस श्रीवृन्दावन धाम को प्राप्त होंगे, इसमें संशय नहीं है ॥३.२८॥
श्रीशस्यापि विमोहनं स्मरकलारङ्गैकरम्याकृति ।
सर्वानन्दकदम्बकोपरि चमत्कारं महादुर्लभं
कंचित् प्रेमरसं स्रवत्तदखिलं क्षिप्त्वै हि वृन्दावनम् ॥
जहां लक्ष्मी और ब्रह्मादि को भी विमोहित करने वाले एकमें कामकला रङ्ग की मोहन मूर्ति गौरश्याम श्रीयुगलकिशोर विराजमान हैं, जहां सर्वानन्दराशि से भी अधिक चमत्कारी महादुर्लभ कोई अनिर्वचनीय प्रेमरस प्रवाहित हो रहा है, सर्वस्व त्यागकर उस श्रीवृन्दावन में आगमन कर ॥३.२९॥
ज्योतिर्भागवतं चकास्ति किमपि स्वानन्दसारोज्ज्वलम् ।
तस्याप्यद्भुतमन्तरन्तरसमोर्द्ध्वाश्चर्यमाधुर्यभू-
र्वृन्दारण्यमिह द्वयं भज सखे तद्गौरनीलं महः ॥
निर्मलतम ब्रह्मानन्दमय महाज्योति के बीच स्वानन्द का उज्ज्वल सार कोई एक भगवज्ज्योति प्रकाशित हो रही है, उस के भी बीच अद्भुत अतुलनीय माधुर्य भूमि यह श्रीवृन्दावन है । हे सखे ! इस स्थल पर उस गौरश्याम युगल विग्रह का भजन कर ॥३.३०॥
1 comment:
Shree Raadhaa-Krshnaaya Namah!
Namaste!
Where can one find the poem from the beginning on? The earliest chapter I found was number 3.
Thank you for your help!
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