सिद्धकृष्णदास बाबाजी महाराजकी समाधि, काम्यवन (Photo from Lake of Flowers).
कार्यमाणौ सखीवृन्दैर्भोजनाच्छादनादिकम् ॥
वे श्रीराधा-कृष्ण हर क्षण ही सर्वदा आविष्टचित्त रहने से कुछ भी नहीं जानते, भोजन तथा वस्त्र धारण करने आदि का कार्य भी सखियों के द्वारा कराते हैं ॥३.३५॥
गौरश्यामकिशोरौ तौ न्तियान्योन्याङ्गसङ्गिनौ ॥
अनङ्गैकरसोदार श्रीवृन्दावनधामनि ।
यापयान्तौ दिवानिशं केवलानङ्गकेलिभिः ॥
निरन्तर वृद्धिशील महानन्द के कारण महा उन्मत्त एवं नित्य एक दूसरे के अङ्गसङ्गी वे गौरश्याम युगलकिशोर एकमें कामरस विषय उत्सवपूर्ण श्रीवृन्दावनधाम में केवल कामकेलि समूह के द्वारा निशिदिन व्यतीत करते हैं ॥३.३६-३७॥
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