Tuesday, June 29, 2010

2010-06-30 ब्रज का समाचार

विकास की भेंट नहीं चढ़ेंगे पेड़


वृंदावन (DJ 2010.06.30)। मथुरा-वृंदावन नगरीय क्षेत्र में विकास कार्यो के लिए अब वृक्षों को नहीं काटा जाएगा। हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है।

वृंदावन में विकास कार्यो के लिए तमाम पेड़ काट दिए गए थे। साढ़े छह सौ से अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति वन विभाग ने भी दी थी। इसको लेकर वृंदावन के मधुमंगल शुक्ल ने हाईकोर्ट में जनहित में याचिका दायर की।

याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग मथुरा डॉ. केएल मीणा को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के निर्देश दिए। बीती 25 जून को डीएफओ श्री मीणा ने कोर्ट में उपस्थित होकर अपना जबाव दाखिल किया।

कोर्ट के फैसले से अवगत कराते हुए डीएफओ ने बताया कि न्यायालय ने मथुरा-वृंदावन नगरीय क्षेत्र में विकास कार्यो के लिए पेड़ों के काटने पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब विकास कार्यो के लिए कोई भी पेड़ नगरीय क्षेत्र मथुरा-वृंदावन में नहीं काटा जाएगा।



कमिश्नर की डेडलाइन आज खत्म


वृंदावन योजना में ५० प्रतिशत भी विकास कार्य नहीं हुएविभागों में आपसी तालमेल नहीं
मानकों को कर रहे हैं दरकिनार
विकास कार्य में देरी से परेशानी


वृंदावन (AU 2010.06.30)। मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट वृंदावन विकास योजना में लगी कार्यदायी संस्थाओं के बीच आपसी तालमेल नहीं बैठ पाया है। इस कारण ही रमणरेती मार्ग पर नाला निर्माण, सड़क निर्माण और विद्युत लाइन स्थानांतरण का कार्य अभी पचास प्रतिशत ही हुए हैं।

मंडलायुक्त द्वारा तीस जून तक कार्य पूरा करने की डेड लाइन कल पूरी हो रही है, लेकिन सभी कार्य अभी अधूरे हैं। कार्यों को तेजी से निपटाने की दौड़ में विभाग मानकों को भी दरकिनार कर रहे हैं। संबंधित विभागों के अधिकारी एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं। विकास कार्यों में हो रही देरी के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

ढाई सौ करोड़ की वृंदावन समग्र विकास योजना के अधिकतर कार्यों को मूर्तरूप देने की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी और जलनिगम को दी गई हैं। पीडब्ल्यूडी के जिम्मे एक तरफ का नाला और सड़क निर्माण है जबकि दूसरे तरफ का नाला और सीवर लाइन डालने का कार्य जल निगम को करना है। वहीं खंभों और विद्युत लाइन को शिफ्ट करने का कार्य विद्युत विभाग का है। इन्हीं कार्यों की समीक्षा करने एक माह पूर्व आए मंडलायुक्त सुधीर एम बोबड़े ने तीनों विभागों को आपसी तालमेल बैठाकर तीस जून तक सभी कार्य पूर्ण करने के आदेश दिए।

मंडलायुक्त द्वारा दी गई डेड लाइन बुधवार को समाप्त हो रही है। तीनों विभागों ने अभी पचास प्रतिशत भी कार्य नहीं किए। रमणरेती से विद्यापीठ चौराहे तक सड़क कार्य अभी बीच में कई स्थानों पर अधूरा है, तो जल निगम को नाला निर्माण में अतिक्रमण आड़े आ रहे हैं। विद्युत विभाग नाला निर्माण की बाट देख रहा है।

जलनिगम के एक्सईएन लोकेंद्र शर्मा कहते हैं कि निगम ने रमणरेती मार्ग पर लगभग साठ प्रतिशत नाले का निर्माण का कार्य कर दिया है। रमणरेती पुलिस चौकी के सामने और हरि निकुंज से पूर्व पीडब्ल्यूडी द्वारा अतिक्रमण न हटाने के कारण नाला निर्माण कार्य रुका हुआ है। विद्युत विभाग के एसडीओ सुनील कुमार सक्सेना का कहना है कि जब तक नाले नहीं बनेंगे तब तक विभाग द्वारा खंभे लगा पाना मुश्किल है। वैसे विभाग पूरा कार्य एक सप्ताह में पूरा कर लेगा।



इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए हवन किया


बरसात नहीं होने से लोग हुए बेचैन

वृंदावन (AU 2010.06.30)। सूर्यदेव की भयंकर तपिश के कारण आम जनजीवन खासा प्रभावित है। भीषण गर्मी से लोग कराह रहे हैं। वहीं जगह-जगह धार्मिक अनुष्ठान कराए जा रहे हैं ताकि जल्द मानसून आए। लोगों का भीषण गर्मी से निजात मिल सके।

इसी शृंखला में भगवान इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए पं. नंददास महाराज के नेतृत्व में बनखंडी स्थित वेणु गोपाल मंदिर में हवन का आयोजन किया गया। पं. रामप्रकाश आचार्य, पवन शास्त्री, हरिदास, मुरली मोहन, सहित अन्य विद्यार्थियों ने विधि-विधान के साथ यज्ञ संपूर्ण कराया।

इसमें सभी कार्यकर्ताओं ने इंद्र देव से गर्मी से राहत प्रदान करने की प्रार्थना की। ज्योतिषाचार्य जगदीश शर्मा गुरु जी ने कहा कि हिंदू धर्म में हवन के आयोजन प्राकृतिक विपत्तियों से निजात दिलाने में सहायक सिद्ध होते हैं। हमें राजनीति के अलावा भी धर्म का आश्रय जरूर लेना चाहिए। प्रकृति के मूलस्वरूप को बनाए रखने में भी योगदान देना चाहिए।

इस अवसर पर कृष्णा माता, पुष्पा माता, विमला देवी, जमुना देवी, ज्योति, सुधा, अनुप्रिया, चंपकलता, राधादासी, प्रिय कृष्ण, कुं. सविता, भगवती माताजी आदि महिला भक्त भी उपस्थित थीं।

फोटो-पी-०१ : इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए वेणु गोपाल मंदिर में किए गए हवन यज्ञ में पूर्णाहुति देते भक्त।



प्राचीन कुंडों का हो सकता है योगदान


मथुरा (DJ 2010.06.30)। मथुरा कुंडों का शहर है। प्राचीन नगरी में सैकड़ों कुंड बेकार हो चले हैं। वर्तमान में गोवर्धन परिक्रमा मार्ग के राधा कुंड, श्याम कुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा पर ही प्रशासन का ज्यादा ध्यान है। ब्रज फाउंडेशन और कुछ अन्य निजी संस्थाएं प्राचीन कुंडों के उद्धार के लिए प्रयास कर रही हैं। अगर इन प्राचीन कुंडों को ही पूरी तरह भर दिया जाए वाटर हार्वेस्टिंग अपने आप हो जाए।



सिकुड़ गए मथुरा के तालाब


मथुरा (DJ 2010.06.30)। वर्षा जल संचय के लिए वाटर हार्वेस्टिंग के तमाम दावे किये जा रहे हैं, लेकिन गांव देहात की पुरानी व्यवस्था को दरकिनार कर दिया गया। देहात के अधिकांश तालाब या तो अवैध कब्जे में हैं या सूखे पड़े हैं। नयी योजना में जो तालाब बनाये जा रहे हैं वह भी पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे।

मानसून सत्र के आते ही बारिश के पानी के संचय को लेकर योजनाओं का खाका खींचा जाने लगा है। गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में रोकने का नारा दिया जा रहा है। मगर तालाबों को उनके मूल रूप में लाने की योजना पर कहीं भी काम नहीं किया जा रहा है।

आबादी क्षेत्र के तालाबों पर अवैध कब्जों की शिकायतों का पुलिंदा अधिकारियों की मेजों पर मोटा हो चुका है। इसके बाद भी अवैध कब्जे न हटा कर उनकी सफाई-खुदाई कराई जा रही है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में सर्वाधिक जोर गांव देहात के तालाबों की सफाई-खुदाई कराकर आदर्श तालाब बनाए जाने पर है। आदर्श तालाब बनाने के लिए उनकी खुदाई के साथ-साथ चारों तरफ पटरी बनाकर सीमांकन का काम तेजी से किया जा रहा है। योजना यह है कि पटरी पर मानसून सत्र में ही पौधे रोप दिए जाएंगे। इसके बाद तालाबों पर बने अवैध कब्जे बरकरार बने रहेंगे। फिर अवैध कब्जों को हटाकर तालाब को उसके मूल रूप में लाए जाने का काम भी मुश्किल हो जाएगा।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में तालाबों की खुदाई-सफाई का काम कर रहे अधिकारियों की माने तो ज्यादातर तालाबों पर ग्रामीणों ने पहले से अवैध कब्जे कर रखे हैं। उनकी पैमाइश कराकर तालाबों की खुदाई-सफाई का काम कहीं भी नहीं कराया जा रहा है। जिस रूप में तालाब है, उसी रूप में उसको आदर्श बनाए जाने का काम चल रहा है। अधिकांश तालाबों की यही स्थिति बताई जा रही है।

अधिकारियों के मुताबिक गांव देहात की आबादी या उससे लगे अधिकांश तालाबों का दायरा कम जरुर हुआ है। कहीं-कहीं तो ग्रामीणों ने तालाबों की भूमि पर अपने भवन तक खड़े कर दिए हैं। उनकी पूर्व में शिकायतें भी हुई, लेकिन जांच प्रक्रिया लंबी होने और राजस्व अधिकारियों की सांठगांठ के चलते उनसे अतिक्रमण नहीं हट सके। यही वजह है कि अधिकांश तालाब सिकुड़ गए।

ज्यादा बारिश होने पर वे तालाब गांव का पानी भी नहीं झेल पाते। गर्मियों की शुरूआत होते ही तालाबों में पानी सूख जाता है। इस स्थिति में तालाबों से वर्ष भर भू-गर्भ जल संचय होता रहेगा। यह बात अधिकारियों के गले भी नहीं उतर रही हैं।

अधिकारियों का ही कहना है कि ग्राम प्रधान गांव की राजनीति के चलते कोई कार्यवाही नहीं करते और कमजोर लोग दबंगों के डर से शिकायत करने नहीं आते। अधिकारी तब तक कार्यवाही नहीं करते, जब तक उनको शिकायत नहीं मिलती। शिकायत मिल भी जाए तो सांठगांठ कर मामले को दबा दिया जाता है।

कुछ लोग न्यायालय की शरण में चले जाते हैं और शिकायत कर्ता फिर ज्यादा लंबी लड़ाई नहीं लड़ता। इसके चलते अवैध कब्जे नहीं हट पाते हैं और तालाबों का दायरा सिमट कर रह जाता है। अब आदर्श तालाब बना दिए जाएंगे तो अतिक्रमणकारियों का रास्ता लगभग साफ हो जाएगा। पटरी बनने के बाद फिर कोई कार्यवाही करने वाला नहीं है।



तालाब-पोखर पर एक-एक कब्जा, कैसे बढ़े जलस्तर


मथुरा (DJ 2010.06.30)। सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण आदेश तालाबों को न पाटने से संबंधित है, लेकिन स्थानीय जनपद में हाल यह कि ग्रामीण क्षेत्र की कौन कहे, शहरी इलाकों में भी तालाब व पोखर धड़ल्ले से पाटे जा रहे हैं। पूरे जनपद में पिछले वर्षो में कम से कम पांच दर्जन तालाब व पोखर एक-एक कर अतिक्रमणकारियों की मंशा की भेंट चढ़ गये। सवाल यह कि जब तालाब-पोखर ही नहीं बचेंगे तो जलस्तर में वृद्धि कैसे होगी?

पहले बात करते हैं मथुरा शहर में नये बस स्टैंड के समीप स्थित देव नगर की। कुछ साल पहले नगर पालिका प्रशासन की शह पर कुछ लोगों ने तालाब पाट दिये। पाटे गये तालाब के स्थान पर अब डूडा गरीबों के लिये मकान बनवा रही है।

पिछले माह इस बारे में शिकायत होने पर तत्कालीन प्रभारी सिटी मजिस्ट्रेट राम अरज यादव ने डूडा की परियोजना अधिकारी श्रीमती अंजू सिंह व नगर पालिका अध्यक्ष श्याम सुंदर उपाध्याय बिट्टू से जानकारी प्राप्त की और नगर पालिका प्रशासन को तालाब से अवैध कब्जा हटवाने के निर्देश दिये।

अफसोस प्रभारी सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश को नगर पालिका प्रशासन ने हवा में उड़ा दिया। तालाब-पोखरों पर अतिक्रमण का यह मामला महज बानगी भर है। करीब डेढ़ दशक तक मथुरा शहर में ही एक दर्जन से अधिक पोखर-तालाब हुआ करते थे। एक-एक सब कालोनाइजरों व अन्य लोगों की मंशा की भेंट चढ़ गये।

अब तो कृष्णानगर स्थित अंबेडकर कालोनी के तालाब पर भी कुछ लोगों की कुदृष्टि लग गई है। इसे भी फैक्ट्रियों से निकलने वाली राख और कबाड़ आदि डालकर पाटा जा रहा है। जनकपुरी स्थित तालाब को भी धीरे-धीरे घेरा जा रहा है।

वर्तमान में मथुरा शहर में दो-तीन पोखर-तालाब ही नजर आ रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में जलभराव होने की यह भी एक वजह है। पहले बरसात का पानी इसमें चला जाता था, अब यह नालों की सफाई न होने से गली-मुहल्लों व सड़कों पर भरता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी तालाब व पोखरों पर कब्जों की करीब यही स्थिति है। छाता क्षेत्र के रान्हैरा गांव में तीन में से एक तालाब पर पूरी तरह अतिक्रमण हुआ बताया गया है।



स्वीमिंग पूल: प्रशिक्षक ही नहीं तो कैसे सीखें तैरना


मथुरा (DJ 2010.06.30)। खेलों को बढ़ावा देने के लिये सरकार की व्यवस्था कम से कम मथुरा में तो हजम नहीं होती नजर आ रही है। गनेशरा में स्व. मोहन पहलवान स्पोर्टस स्टेडियम में स्वीमिंग पूल पर पौने दो करोड़ खर्च हो गया पर बिना प्रशिक्षक के तैराक कैसे बनेंगे।

किसी चालक बिना वाहन की, आदमी बिना घर की परिकल्पना नहीं की जा सकती, ठीक उसी तरह किसी भी खेल में प्रशिक्षक बिना खिलाड़ी तैयार करने की भी परिकल्पना बेमानी है। करीब एक करोड़ 88 लाख रुपये की लागत से बने स्वीमिंग पूल के लिये प्रशिक्षक और जीवन रक्षक न होने से तैराक कैसे तैयार हों।

करीब चार वर्ष पूर्व स्टेडियम में एक आधुनिक तरणताल बनवाने के लिये शासन ने 1.88 करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे। इस कार्य को कराने के लिये यूपीसीएल दिल्ली की ऐजेंसी को टेंडर दिया था। इस धनराशि से एक तरणताल, 25 केवीए का ट्रांसफार्मर, सीसी सड़क तथा एक स्टोर रुम बनाना था। चरणबद्ध मिली धनराशि से यह कार्य अब लगभग पूर्ण हो चुका है। पानी का ट्यूबवेल भी तैयार है।

सूत्रों की माने तो तरणताल में तैराकी सीखने वालों के लिये शासन की ओर से निर्धारित शुल्क भी तय कर दिये हैं। विडम्बना यह है कि खेल की बारीकी सिखाने वाले ही नहीं हैं तो फिर उसका फायदा कैसे मिले। काफी युवा, छात्र-छात्रा तैराकी सीखने की इच्छा रखते हैं इसे कुछ तो कैरियर बनाकर देश का नाम रोशन भी करने की तमन्ना रखे हुए होंगे, लेकिन क्या करें जब प्रशिक्षक ही नहीं है। गर्मी के मौसम में तैराकी सीखने के साथ ही उसमें तैर कर आनंद लेने वालों को भी इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।


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