Monday, June 7, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृत १.३७-४०


यह तस्वीर सूर्यकुण्ड मंदिर की है, जहां श्रीमती राधारानि नित्य-कृष्ण-सङ्गमार्थ में सूर्याराधिका होती रहती हैं. खींची है गोपदेवीदासी ने.


वृन्दाटवी यदि रवीन्दुहुताशा विद्युत्
कोटिप्रभाविभवकारी महाप्रभाढ्या ।
आत्मप्रभा सकृदपि प्रतिभाति चित्ते
वित्तैषणादि नहि तस्य मनस्युदेति ॥

कोटि कोटि सूर्य, चन्द्र, अग्नि एवं विद्युत् समूह की प्रभा को पराजयकारी, महा दीप्तिमती स्वप्रकाशा वृन्दाटवी जिस किसी के चित्त मेम् एकवार भी उदित होती है, फिर उसके मन में धन, स्त्री, पुत्र एवं प्रतिष्ठादि विषय-वासना स्थान नहीं पा सकती ॥१.३७॥



श्रीराधिकामुरलीमोहनकेलिकुञ्ज-
पुञ्जेन मञ्जुलतरा रससिन्धुदोग्ध्री ।
स्वानन्दचिन्मयमहाद्भुतस्वत्त्ववृन्द-
वृन्दाटवी मम सबीजमघं निहन्तु ॥

श्री-राधिका मुरलीमनोहर के केलिकुञ्ज पुञ्जों से जो मनोहरतरा हो रही है, जो रससमुद्र की प्रभव स्थलि है, स्वानन्द चिन्मय रस पूर्ण महाद्भुत प्राणियों के द्वारा सेवित यह श्रीवृन्दाटवी मेरे पापों को समूल, पाप बीज अविद्या के सहित, विनाश करे ॥१.३८॥



वृन्दाटवी सहजवीतसमस्तदोषा
दोषाकरान् अपि गुणाकरतां नयन्ती ।
पोषाय मे सकलधर्मबहिष्कृतस्य
शोषाय दुस्तरमहाघचयस्य भूयात् ॥

यह श्रीवृन्दावन जीवों के समस्त दोषों को सहज में नाश करता है, यह सर्व दोष युक्त दुष्ट गणों को भी गुण मंडित कर देता है । यह श्रीवृन्दावन मुझ सर्व धर्म हीन का पालन करे एवं मेरे दुस्तर महान् पापों को नष्ट करे, यही प्रार्थना है ॥१.३९॥



वृन्दाटवीबहुभवीयसुपुण्यपुञ्जान्
नेत्रातिथिर्भवति यस्य महामहिम्नः ।
तस्येश्वरः सकलकर्म मृषा करोति
ब्रह्मादयस्तमतिभक्तियुताः स्तुवन्ति ॥

अनेक जन्मों के सुपुण्य समूह के कारण श्रीवृन्दावन जिस महान पुरुष के दृष्टिगोचर होता है, उस के पूर्व सञ्चित तथा आगामी समस्त कर्मों को भगवान् झूंठा नाश कर देते हैं, एवं ब्रह्मादि उसकी अति भक्ति पूर्वक स्तुति करते हैं ॥१.४०॥


1 comment:

Mukesh K. Agrawal said...

बहुत बहुत धन्यवाद जगत प्रभु जी......सूर्यकुंड के सूर्य देव का दर्शन करवाने के लिए....

!! जय जय श्री राधे श्याम !!