Tekari Rani Mandir, Vrindavan, photo by Gopa Dasi.
सर्वोत्तमोत्तम चर स्थिर सत्त्वजातौ ।
श्रीराधिकारमणभक्तिरसैककोषे
तोषेण नित्यं परमेण कदा वसामि ॥॥
सकल पवित्रता को पवित्र करने वाले, सर्वोत्तमोत्तम स्थावर-जङ्गम से निषेवित, एवं श्रीराधारमण की भक्ति-रस के एकमात्र कोष या आधार स्वरूप इस श्रीवृन्दावन में मैं कब नित्य परमानन्द पूर्वक वास करूंगा ? ॥१.४१॥
सर्वोज्ज्वलोज्ज्वलदुदारमतिः सदास्ते ।
सर्वोत्तमोत्तममहामहिमन्यनन्ते
सर्वाद्भुताद्भुतमहारसराजधाम्नि ॥॥
सर्वपावन-पावन सर्वोत्तमोत्तम महामहिमायुक्त सर्व चमत्कार चमत्कारी महा शरीर्रूप रस की राजधानी इस श्रीवृन्दावन में सर्वश्रेष्ठ उज्ज्वलरस के अधिनायक उदारमति श्यामसुन्दर नित्य ही विराजमान हैं, अथवा सर्वोज्ज्वलोज्ज्वल उदारमति वैष्णव नित्य विराजमान हैं ॥१.४२॥
नन्दाम्बुधिस्नपनदिव्यमहाप्रभावे ।
भावेन केनचिदिहामृतये वसन्ति
ते सन्ति सर्वपरवैष्णवलोकमूर्ध्नि ॥॥
स्थावर-जङ्गमादि निखिल जीवों को आनन्द-समुद्र में मज्जन कराने वाले, दिव्य महाप्रभावशाली इस वृन्दावन में जिस किसी भी भाव को आश्रय कर जो मृत्य पर्यन्त वास करते हैं, वे ही सर्वश्रेष्ठ वैष्णवों के मुकुटमणि हैं ॥१.४३॥
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