Thursday, June 17, 2010

भारत में ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन ५५ फीसदी बढ़ा

सरकार की जलवायु परिवर्तन पर आकलन तंत्र (INCC आईएनसीसीए) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन १३ वर्ष मे करीब ५५ फीसदी तक बढ़ गया है लेकिन जनसंख्या के लिहाज से बात करें तो प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व के औसत आंकड़ों के मुकाबले अब भी कम है ।

आईएनसीसीए की रिपोर्ट भारत (ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन २००७) मे पर्यावरण के लिये घातक गैसों के उत्सर्जन में १९९४ की तुलना में २००७ तक आये परिवर्तन का आकलन पेश किया गया है ।

रिपोर्ट कहती है कि वर्ष १९९४ में भारत में ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन १२,२८५,४०० लाख टन था जो २००७ में बढ़कर १७,२७९,१०० लाख टन हो गया । यानी १३ वर्ष की अवधि में उत्सर्जन में करीब ५५ फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई ।

इसके बावजूद २००७ में अमेरीका और चीन का ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन भारत से करीब चार गुना ज्यादा था ।

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंर्ट की प्रमुख सुनीता नारायण ने कहा, इस रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के आंकड़े है । लेकिन सिर्फ इसी आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे है ।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ग्रीन हाऊस गैसों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं देखी गयी है । वर्ष १९९४ में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन १.४ टन था, जो २००७ में बढ़कर १.७ टन हो गया । विश्व में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन औसतन दो टन है ।

बहरहाल सुश्री सुनीता स्वीकार करती है कि आंकड़े जारी होना जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने में गंभीर नहीं होने का भारत पर आरोप लगाने वाले देशों के लिये एक जवाब है ।

रिपोर्ट कहती है कि ग्रीन हाऊस गैसों के कुल उत्सर्जन में सबसे ज्यादा ५८ फीसदी हिस्सेदारी ऊर्जा क्षेत्र की है । इसके बाद उद्योग जगत के कारण २२ फीसदी, कृषि क्षेत्र की वजह से १७ फीसदी और अपशिष्ट के चलते तीन फीसदी का उत्सर्जन होता है ।

पर्यावरणविद वंदना शिवा ने कहा कि दुनिया यह नही जानती थी कि तेजी से विकास कर रही देश की अर्थव्यवस्था में ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन कितना है । इन आंकड़ों से निश्चित तौर पर सरकार को अपनी बात रखने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में हो रही कोशिशों में पारदर्शिता लाने में मदद मिलेगी ।

उन्होंने कहा कि १९९४ से २००७ के बीच अगर कार्बन उत्सर्जन में ५५ फीसदी तक इजाफा हुआ है तो यह उत्साहजनक संकेत नहीं है । अब यह हमारे लिये चिंता का विषय है कि हम आने वाले वर्षो में कैसे उत्सर्जन में २० से २५ फीसदी की कटौती लाने वाले है ।

वह बताती है कि भारत ऊर्जा जरूरतों और उत्सर्जन के बीच संतुलन नहीं बिठा पा रहा है । ऊर्जा क्षेत्र की कुल उत्सर्जन में जितनी हिस्सेदारी है वह चिंता का विषय है नदियों और खेतीहर ग्रामीणों को नुकसान पहुचाते बाँधों का निर्माण किया जा रहा है पर लक्ष्य ऊर्जा के विकल्पों पर ज्यादा आक्रमकता के साथ काम नही किया जा रहा ।

भारत में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के आंकड़े जारी करते हुए पिछले दिनों पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने कहा था यह किसी भी विकासशील देश की ओर से जारी हुए अब तक के सबसे अद्यतन आंकड़े है भारत इस आकलन के लिये बाध्यकारी नहीं था लेकिन हमने स्वेच्छा से यह पहल की ।

उन्होंने कहा था, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में इससे पहले देश के पास १९९४ के आंकड़े थे ।



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