Photo of Keshi Ghat by Melanie Drury.
कृष्णस्याश्चर्यसीमा परमभगवतः कुत्र लीलार्थमूर्तिः ।
कुत्रत्या कृष्णपादाम्बुजभजनमहानन्दसाम्राज्यकाष्ठा
भ्रातर्वक्ष्ये रहस्यं शृणु सकलमिदं श्रीलवृन्दावनेऽत्र ॥
श्रीकृष्ण में एकान्त भाव अनायास सब जीवों को निश्चय रूप से कहां प्राप्त होता है ? परम भगवान् श्रीकृष्ण का महैश्वर्य जनक केवल लीला विग्रह कहां दीख पड़ता है ? और फिर श्रीकृष्ण के पादपद्मों के भजन से उत्पन्न होने वाले महानन्द की परा काष्ठा कहां देखी जा सकती है ? भाई ! मैं कहता हूं रहस्य मय कथा सुन, इसी श्रीवृन्दावन में ही ये समस्त वस्तुएं प्राप्त होती हैं ॥१.४७॥
स्वच्छन्दं पिब यामुनं जलमलं चीरैः सुkaन्थां कुरु ।
संमानं कलयति घोरगरलं नीचापमानं सुधां
श्रीराधामुरलीधरौ भज रसाद्वृन्दावनं मा त्यज ॥
भाई ! वृक्षों के नीचे नीचे अवस्थान कर, ग्राम ग्राम में भिक्षा कर, स्वच्छन्द चित्त से यमुना का जल यथेष्ट पान कर, चीरों चाथड़ों के द्वारा उत्तमोत्तमअ कन्था तैयार कर, सम्मान को घोर विष एवं नीचोपमान तुच्छ अपमान को ही अमृत जान ! भ्रातः, प्रेम से श्रीराधामुरलीधर का भजन कर, और श्रीवृन्दावन का त्याग मत कर ॥१.४८॥
कारं पारगतैरपि श्रुतिशिरोवृन्दस्य नेक्ष्यं मनाक् ।
श्रीवृन्दाविपिनं सुदुर्लभतरं प्रत्याशमासाद्य भोः
क्षुद्राशा कुपिशाचिका वशगतो बम्भ्रम्यसे किं बहिः ॥
कृष्णानन्द-रस-समुद्र के विचित्र उज्ज्वल आकार श्रेष्ठतम सार का किञ्चित मात्र भी दर्शन श्रेष्ठ श्रेष्ठ वेदवित् शिरोमणि गण भी कभी प्राप्त नहीं कर सकते । भ्रातः ! उसी सुदुर्लभतर श्रीवृन्दावन में आकर भी तू क्षुद्र वासना रूप कुत्सित पिशाची के वश होकर बहिर्मुख हुआ वृथा क्यों घूमता है ? ॥१.४९॥
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