‘आओ मेघा आओ, मेघा पानी तो बरसाओ’
गड़बड़ा गए अनुमान, अभी बारिश का इंतजार
वायु का दबाव नहीं बनने से मानसून हो रहे लेट
अधिकतम तापमान ४५ डिग्री सेल्सियस पहुंचा
कोसीकलां (अमर उजाला ब्यूरो, 2010.07.01) । वायु का आवश्यक दबाव नहीं बनने की वजह से मानसून की चाल गड़बड़ा गई है। काले मेघा रुख इधर नहीं कर रहे हैं। इससे गरमी का प्रकोप और बढ़ गया है। धान की पौध रोपने वाले किसान भी अब बारिश के इंतजार में बेहाल होने लगे हैं।
खेतों में धान पौध को पानी नहीं मिलने से इनका कुम्हलाना शुरू हो गया है। खेतों से लेकर बाजारों तक हर जगह बरसात का इंतजार हो रहा है। ‘आओ मेघा आओ, मेघा पानी तो बरसाओ’ की उम्मीद के साथ लोग जी रहे हैं।
हालांकि मानसून की बारिश २६-२७ जून से शुरू होनी चाहिए थी, लेकिन तयशुदा वक्त से अब मानसून लेट हो गया है। जून की बजाए जुलाई के शुरूआती दिनों में ही बारिश की रिमझिम फुहारों से भीगने का मौका मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानसून देरी से आएगा। ये देरी एक पखवाड़े तक लंबी हो सकती है। क्योंकि बारिश के लिए आवश्यक वायु का दबाव क्षेत्र नहीं बन पा रहा है। इधर, बुधवार को अधिकतम तापमान ४५ डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। गरमी और चिपचिपाहट ने लोगों को परेशान कर दिया। आर्द्रता में एक फीसदी की कमी से शुष्की रही और लोग हवा के लिए तरस गए।
नौहझील डार्क ब्लॉक, पर बलदेव में सबसे ज्यादा 35 मी. गहराई में पानी
मथुरा (DJ 2010.07.01)। मथुरा जनपद में नौहझील ब्लॉक को डार्क जोन या क्रिटिकल श्रेणी में रखा गया है। अन्य नौ ब्लॉकों में मथुरा, छाता, मांट, राया एवं बलदेव ब्लॉक सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं। शेष चार ब्लॉक यथा फरह, गोवर्धन, नंदगांव एवं चौमुंहा सामान्य श्रेणी के बताये गये हैं।
भू-गर्भ जल विभाग के मुताबिक किसी भी जिले में ब्लॉकों की श्रेणी उनमें कृषि एवं अन्य कार्यो के लिए दोहित भू-गर्भ जल तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग या वाटर रिचार्जिग के माध्यमों से जमीन के अंदर डाले जाने वाले पानी के प्रतिशत पर निर्भर करती है।
यदि किसी ब्लॉक में सौ प्रतिशत से अधिकपानी का दोहन किया जा रहा है और वर्षा पूर्व या बाद इसमें बीस घन सेमी या कम की गिरावट दर्ज की जाती है तो उक्त ब्लॉक अति दोहित माना जाएगा। इसी तरह किसी ब्लॉक में यदि सत्तर से सौ प्रतिशत भू-गर्भ जल का दोहन हो रहा है तो यह सेमी क्रिटिकल माना जाएगा। नब्बे से सौ प्रतिशत पानी का दोहन करने वाले ब्लॉक क्रिटिकल श्रेणी में रखे गये हैं।
बिना बरसे ही चले गए बादल
मथुरा (DJ 2010.07.01)। कान्हा की नगरी के ऊपर प्री मानसून के बादल फिर छा गए हैं। बुधवार को दोपहर बाद छींटे भी पड़े। तापमान भी पिछले दो दिन से 42 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर बना हुआ है। मौसम विभाग ने जल्द ही बारिश होने के संकेत दिए हैं।
मानसून के आने में भले ही अभी कुछ दिन लग जाए, लेकिन प्री मानसून के बादल फिर छा गए हैं। दोपहर मौसम ने करवट बदली। एक बार लगा कि बारिश होगी, लेकिन छींटे पड़ने के बाद ही बादल चले गए। मौसम का यह परिर्वतन गर्मी से राहत नहीं दे सका। अभी जनमानस उमस भरी गर्मी से परेशान है।
तापमान भी पिछले दो दिन से 42 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर बना हुआ है। कृषि संभागीय परीक्षण एवं प्रदर्शन केंद्र राया पर आर्द्र ता 51 प्रतिशत बनी हुई है। मौसम विभाग ने आंधी के साथ बारिश होने की संभावना व्यक्त करते हुए तापमान में दो तीन डिग्री सेल्सियस की गिरावट आने के भी संकेत दिए हैं।
बारिश के लिये सवा लाख कायते करीमा का वजीफा
मथुरा (DJ 2010.07.01)। बारिस नहीं होने के कारण सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदाय के प्राणी परेशान हैं। हर तरफ अकुलाहट, चिंता व फिक्र बढ़ रही है। हिंदू, मुस्लिम, सिंख और ईसाई अपने तरीके से प्रार्थना करने में संलग्न हैं। वर्तमान में बिजली की हो रही बेतहासा कटौती तथा दिन-रात की आंख-मिचौनी ने आम आदमी का जीवन दुश्वार कर दिया है। ऐसे माहौल में त्रस्त खुदा के बंदों ने बुधवार को सवा लाख का आयते करीमा का वजीफा पढ़ना शुरु कर दिया।
सदर बाजार स्थित मस्जिद सादुल्ला के सचिव हाजी सैयद बुरहानुल आबेदीन उर्फ चमन अली के सानिध्य में खुदा की इबादत शुरु की गई। आवाम की गुजारिश पर सुबह 6 बजे से ही वजीफा पढ़ना शुरु कर दिया गया। खुदाई खिदतगारों का कहना है कि रोजाना 101 बार पढ़ने से अल्ला तआला मीकाईल
अलैहिस्सलाम फरिश्ते को हुक्म देकर बारिस अता फरमाएंगे। ताकि अल्ला तआला की सारी मखलूक सैराब हो जाए। हाजी चमन अली का कहना है कि इनशा अल्लाह जल्द बारिश होगी। ऐलान किया कि जब तक बारिश नहीं होगी आयते करीमा का वजीफा पढ़ना जारी रहेगा। अल्लाह तआला से गरमी से निजात दिलाने के लिये दुआ के बास्ते इबादत करने में अनेक बंदे शरीक हैं।
ये सरकार नहीं बचाते पानी
मथुरा (DJ 2010.07.01)। वर्षा जल संरक्षण की दृष्टि से मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अफसर कई साल से रेन वाटर हार्वेस्टिंग का शोर मचा रहे हैं। 300 वर्ग मीटर से अधिक भूखंड क्षेत्रफल के भवन मालिकों से इस तकनीक को अपनाने के लिये कहा जा रहा है, लेकिन इन “सरकारों” पर इसे अपनाने के लिये कौन दबाव बनाएं?
आम जनता की कौन कहे, जनपद में करीब एक दर्जन से अधिक सरकारी महकमे भी विप्रा अफसरों की नहीं सुन रहे। इन विभागों में सिंचाई, जल निगम और कृषि महकमा भी शामिल हैं, जहां पानी से संबंधित कार्य होते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य यह भी कि विप्रा कर्मी ही नहीं जानते कि पिछले समय में रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीकी न अपनाने पर कितने सरकारी, अर्द्ध सरकारी और आम जनता को नोटिस भेजे गये, कार्यवाही करने की बात तो दूर।
जांच-पड़ताल और विभागीय कर्मचारियों से मिली जानकारी अनुसार सिंचाई विभाग, कृषि, लोक निर्माण विभाग, राजीव भवन, जिला अस्पताल और महिला चिकित्सालय, सीएमओ कार्यालय, नगर पालिका परिषद, बीएसएनएल, रोडवेज, एआरटीओ, सेवायोजन कार्यालय, पर्यटन विभाग, पुरातत्व, बीएसए और डीआईओएस कार्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों पर जल संचयन के लिये इस तकनीकी का अभाव है।
दरअसल मथुरा-वृंदावन नगर में औसत वार्षिक वर्षा करीब 575 मिमी ही होती है। एक ओर साल-दर-साल बारिश कम हो रही है तो दूसरी ओर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सबमर्सिबल पंप आदि की बढ़ती संख्या से भूमिगत जलस्तर भी घटता जा रहा है।
वर्ष 2021 तक जनपद की आबादी जब करीब 25 लाख तक पहुंच जायेगी तब क्या हाल होगा ? इसकी कल्पना की जा सकती है। यही वजह कि शासन ने पिछले कुछ साल से 300 वर्ग मीटर से अधिक भूखंड क्षेत्रफल के भवनों में इस तकनीक को अनिवार्य बना दिया है।
कहने के लिये तो विप्रा से स्वीकृत नक्शे में रूफ रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीकी का प्रावधान होता है, लेकिन मौके पर इसका निर्माण हो रहा है या नहीं, इसकी जांच-पड़ताल करने की फुर्सत विप्रा के जिम्मेदार कर्मियों को नहीं होती। विप्रा के अधिशासी अभियंता वीके गोयल बताते हैं कि इस वित्तीय वर्ष में अब तक विप्रा ने सात भवन मानचित्र स्वीकृत किये हैं, इनमें से केवल चार में ही इस तकनीकी को अपनाया गया।
No comments:
Post a Comment