कालिंदी के जल से आने लगी दुर्गंध
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सिल्ट हटाओ अभियान फ्लाप साबित
घाटों पर गंदगी बनी जी का जंजाल
मायूस होकर लौट रहे हजारों श्रद्धालु
मथुरा (AU 2010.07.05)। जिला प्रशासन के दशहरा पर्व से पूर्व यमुना प्रदूषण मुक्ति करने के दावे फुस हो गए हैं। इससे यमुना स्वच्छता अभियान की पोल खुल गई है। वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सिल्ट हटाओ अभियान भी फ्लाप साबित हुआ है। यमुना में गंदगी जस की तस बनी हुई है। हालात यह हो गए हैं कि कालिंदी के पानी से अब दुर्गंध आ रही है। यमुना के सभी घाटों पर ऐसे ही हालात बने हुए हैं। श्रद्धालुओं में इसको लेकर उबाल है।
यमुना कार्य योजना हो या पतित पावनी कालिंदी को प्रदूषण मुक्त करने के तमाम प्रशासनिक प्रयास की हकीकत घाटों के पास पहुंचते ही देखी जा सकती है। कालिंदी में प्रदूषण, कीड़ों का दिखना तो कोई नई बात नहीं, अब पांच-छह दिन से यमुना में मृत लाशों जैसी दुर्गंध आ रही है। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित परिषद ने गोताखोरों को भेज यह जानने की कोशिश की कि कहीं कालिंदी में कोई लाश तो नहीं फंसी पर ऐसा कुछ नहीं मिला। बुजुर्ग और जानकारों का कहना है कि यमुना की आंतरिक सतह पर सिल्ट जमा है और ऊष्मा के कारण इसमें से भयंकर दुर्गंध आ रही है।
जलकुंभियों की बहुतायत होने से बहुत सा सड़ा-गला कूड़ा इसमें अड़ा पड़ा है। सिल्ट हटाओ अभियान भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ। तीर्थ पुरोहित परिषद के पदाधिकारी कांता नाथ चतुर्वेदी का कहना है कि यमुना से सिल्ट हटाने का कोई फायदा नहीं, जितनी हटाई जाती है उतनी ही रोजाना जमा होना शुरू हो जाती है।
दूसरी ओर यमुना एक्शन प्लान के नोडल अधिकारी भी जल्दी-जल्दी बदले हैं । पिछले छह महीनों में ही तीन अधिकारियों के तबादले हो चुके हैं। इससे हालात और खराब हो गए हैं। नवनियुक्त नोडल अधिकारी कैलाश चंद्र का कहना है कि यमुना प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए वह जल्द सफाई अभियान चलवाएंगे इस संबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
कहर बनकर टूटी पहली बारिश
घरों में भरा पानी, सड़कों पर कीचड़, जलभराव से जूझे लोग
लाखों रुपये का नुकसान हुआ
पालिका को कोसते रहे लोग
मथुरा (AU 2010.07.05)। मानसून की पहली बारिश शहर पर कहर बनकर टूटी। रेलवे पुलों के नीचे पानी भरने से वाहन चालकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई मकानों में पानी भरने से लोग काफी परेशान रहे। जगह-जगह जलभराव और कीचड़ से लोगों को दो-चार होना पड़ा। नगरपालिका एवं जिला प्रशासन की हीलाहवाली को शहर के बाशिंदे कोसते नजर आए।
रविवार की शाम को हुई बारिश ने शहर को नरक में तब्दील करके रख दिया। शहर के ताल तलैया हो जाने के बारे में ‘अमर उजाला’ ने तीन दिन पूर्व प्रकाशित समाचार में बखूबी आगाह किया था। रात में घर लौटने वाले लोगों को जगह-जगह जलभराव से जूझना पड़ा। अंबेडकर नगर कालोनी, अंबाखार, अंतापाड़ा, जयसिंहपुरा, राधेश्याम कालोनी, सुभाष नगर आदि निचले इलाकों में बने मकानों में पानी घुस गया, जिससे लाखों रुपये का नुकसान हुआ।
रातभर लोग पानी को निकालते देखे गए। साथ ही नगरपालिका प्रशासन को भी कोसते रहे। रविवार को न तो जिला एवं नगरपालिका प्रशासन ने जलभराव के पीड़ित लोगों की सुध तक नहीं ली। शहर के होली गेट, कोतवाली रोड, डीग गेट, भरतपुर गेट, भैंस बहोरा, क्वालिटी चौराहा, सदर बाजार, मसानी चौराहा, भूतेश्वर तिराहे पर कीचड़ ने हर किसी को बेहाल किया। लोगों ने नाले की सफाई नहीं किए जाने पर पालिका को कोसा।
qरेलवे पुल फिर लबालब, जामz
मथुरा। रविवार की शाम हुई बारिश से रेलवे पुलों के नीचे भरे पानी से रात तक निजात नहीं मिल सकी। वाहन चालकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
नए बस अड्डे व पुराने बस अड्डे के रेलवे पुलों के नीचे करीब चार से लेकर पांच फुट तक पानी भर गया। बमुश्किल बस एवं टेंपो ही निकल पा रहे थे, इसके अलावा बाइक, चौपहिया वाहन सवारों ने दूसरा रास्ता अपनाया। शहर के हृदय स्थल होली गेट से भरतपुर गेट (मछली मंडी) तक वाहनों की लंबी-लंबी कतारें लगी रही। जाम को खुलवाने को पुलिस एवं यातायात सिपाही ने खुलवाने की हिमाकत तक नहीं की।
इन कालोनियों में भरा पानी -- चंद्रपुरी, नटवर नगर, भाटिया कालोनी (जयसिंहपुरा), बल्देवपुरी, द्वारिकापुरी, अंबेडकर नगर, सौंख रोड से सटी कालोनी, बीएसए कालेज के पीछे की एक दर्जन कालोनी, नवनीत नगर, कंकाली, मधुवन एंक्लेव, गोपाल नगर आदि।
पहली झमाझम बारिश से शहर बना ताल-तलैया
मथुरा (DJ 2010.07.05)। प्री मानसून की पहली झमाझम बारिश ने शहर को ताल-तलैया बना कर रख दिया। तीनों रेलवे पुलों के नीचे पानी भर जाने से पैदल राहगीरों को लाइन पार कर जाना पड़ा तो वाहन चालक को लंबा चक्कर काटना पड़ गया। होली गेट क्षेत्र में हुए जलभराव से भी लोगों की दिक्कतें बढ़ गई। हालांकि पहली झमाझम बारिश का लोगों ने खूब लुत्फ उठाया।
कई दिनों से उमस भरी गर्मी झेल रहे लोगों को रविवार की शाम को हुई पहली झमाझम बारिश से राहत मिल गई। इससे पहले वे उमस के पसीने से दो-चार हो रहे थे। दोपहर में 37 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया तापमान शाम को बारिश होने से तीन डिग्री सेल्सियस नीचे लुढ़क आया। शाम सुहानी हो गई। लोग सड़कों पर निकल आए और मौसम का पूरा लुत्फ उठाया।
झमाझम बारिश के साथ ही लोगों की दिक्कतें भी बढ़ गई। करीब बीस मिनट की बारिश ने पुराने व नये बस स्टैंड समेत भूतेश्वर तिराहे के निकटवर्ती रेलवे पुलों के नीचे से यातायात को रोक दिया। तीनों रेलवे पुलों के नीचे हुए जलभराव से लोगों रेलवे लाइन पार कर निकलना पड़ा।
वाहनों चालकों को ज्यादा मुसीबत झेलनी पड़ी। उनको काफी लंबा चक्कर काट कर निकलना पड़ा। कंकाली के पास पहले से भरे पानी में इजाफा हो गया और तमाम वाहन इसमें फंस गए। बारिश के पानी को नाले नालियां भी नहीं झेल पाई। तमाम गंदगी बारिश के पानी के साथ बहकर यमुना में समा गई।
होली गेट चौराहे पर पानी ही पानी हो गया। दर्जनों दुकानों के सामने पानी जमा होने से लोगों को आवाजाही में भारी परेशानी हुई। बताया गया है कि होली गेट अंदर भी पानी कई दुकानों में घुस गया। डीग गेट पुलिस चौकी के सामने भी जलभराव हो जाने से आवाजाही में लोगों को भारी परेशानी हुई।
सौंख रोड स्थित अम्बेडकर नगर, सुखदेव नगर, ज्योति नगर, रधिका बिहार, रूकमणि बिहार, पातीराम मंदिर, पदमपुरी, कृष्णा नगर क्षेत्र में जल भराव की स्थिति पैदा हो गई। मंडी चौराहे समेत महेन्द्र नगर, दिल्ली वाली बाउंड्री, मायापुरी कालोनी, आर के पुरम, अमर कालोनी आदि क्षेत्र में पानी भर जाने से स्थानीय नागरिकों की मुसीबतें बढ़ गई। नटवर नगर, चन्द्रपुरी कालोनी में भी जलभराव हो गया। महोली रोड स्थित कई कई कालोनियों में जलभराव हो जाने से लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी।
‘मेरी अखियों के सामने ही रहणा, ओ शेरो वाली...’
लक्खा के भजन सुन श्रोता हुए मंत्रमुग्ध
बांकेबिहारी को भी समर्पित किए भजन
लखविंदर को देख खुश हुए श्रद्धालु
वृंदावन (AU 2010.07.05)। बांकेबिहारी मंदिर के चबूतरे पर रविवार रात प्रख्यात भजन गायक लखविंदर सिंह लक्खा ने भजनों की प्रस्तुति से श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने बांकेबिहारी और देवी मां के भजन गाए।
उन्होंने सर्वप्रथम ‘बांकेबिहारी मुझको देना सहारा, कहीं छूट जाए न दामन तुम्हारा...’, ‘बिहारी तेरे नैना रूप भरे...’, ‘अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, दर पे सुदामा गरीब आ गया है...’ सुनाए।
इनसे संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो गया। बाहर से श्रद्धालु भी एक घड़ी तो लक्खा को देख आश्चर्यचकित हो गए और भक्तिभाव के साथ ठाकुरजी के भजनों में खो गए। भजनों का यह क्रम देर रात तक जारी रहा। इसके बाद उन्होंने श्रद्धालुओं के अनुरोध पर मातारानी के भजन गाए।
उन्होंने ‘मंदिर में मैया भक्तों से झगड़े, तू क्यों नहीं लाया रे गोटे की चुनरी...’, ‘मेरी अखियों के सामने ही रहणा, ओ शेरो वाली जगदंबे...’ आदि भजन सुनाए। इस दौरान लक्खा की प्रस्तुति ने समां बांध दिया है।
इस मौके चंद्रकांत, मनीष, नुसरत अली, दिनेश शर्मा, गोपीबल्लभ शुक्ला, विपुल शर्मा, पीयूषनाथ गोस्वामी, अंकित अग्रवाल, देवीलाल, जयेश, मोहित शर्मा, हिमांशु शर्मा, श्यामसुंदर पाठक आदि थे।
फोटो-पी-३ : वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के चबूतरे पर भजन प्रस्तुत करते भजन गायक लखवीर सिंह लक्खा।
आज प्रतिष्ठान बंद रखेंगे व्यापारी
मथुरा (AU 2010.07.05)। पश्चिमी उप्र उद्योग व्यापार मंडल से संबद्ध नगर उद्योग व्यापार मंडल ने बढ़ती महंगाई के विरोध में बंद का पुरजोर समर्थन किया है।
नगर अध्यक्ष दिनेश अग्रवाल ने कहा केंद्र सरकार की गलत नीतियों के चलते महंगाई बेतहाशा बढ़ रही है। इसने आम लोगों की कमर को तोड़ कर रख दिया है। इस मौके पर सूरजभान सर्राफ, राजेश बजाज, कृष्ण मुरारी खंडेलवाल, मदनमोहन श्रीवास्तव, सुशील दीवान, विजय अग्रवाल, रामवीर यादव, अश्वनी अग्रवाल, सचिन अग्रवाल, ललित गुप्ता, विजय शर्मा आदि है।
मथुरा उद्योग व्यापार मंडल की बैठक में पेट्रोल, डीजल की मूल्य वृद्धि के विरोध में सोमवार को बाजार बंद रखने को गया है। समर्थन देने वालों में कंचन लाल अग्रवाल, कृष्ण कुमार शर्मा, दिनेश चंद वार्ष्णेय, राजकुमार गोयल, त्रिलोकी नाथ चौधरी, कैलाश चंद, विनोद कुमार, मुन्नालाल, महेश अग्रवाल, दीपक सर्राफ, राजेश अग्रवाल, राजेंद्र सर्राफ आदि थे।
दस किमी परिधि के शहर में बीघा भर जमीन भी कच्ची नहीं
मथुरा (DJ 2010.07.05) । पानी जैसी प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए कोई गंभीर नहीं है। प्राकृतिक रूप से संरक्षित जल पर हथौड़े चल रहे हैं तो कृत्रिम जल संरक्षण के लिए सुगबुगाहट तो है, पर प्रयास इसके लिए भी नहीं हो रहे।
चार हजार साल पहले फिलीस्तीन और ग्रीस में भूगर्भ जल रिचार्जिग पहली बार शुरू की गयी थी। अपने यहां पानी के लिए चार हजार साल पुरानी चिंता अभी भी यहीं तक ही सीमित है। शासन-प्रशासन अंडर ग्राउंड वाटर रिचार्जिग के लिए योजनाएं तो ला रहा है पर जमीन पर वाटर रिचार्जिग का कोई रूप किसी स्तर पर देखने को नहीं मिलता। उल्टे रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर हाय-तौबा अक्सर गर्मी के मौसम में मचनी शुरू होती है और मानसून जाने के साथ ही खत्म हो जाती है, जबकि निजी स्तर पर भी पानी को सहेजने के उपाय नहीं किए जा रहे।
प्राकृतिक जल से जुड़ी समस्याओं का अतिरेक भी इस संपदा के लिए खतरा बना हुआ है। शहरीकरण, बारिश की कमी, मिंट्टी की खराब गुणवत्ता और प्रदूषण की भयावहता के लिए दोषी लोग अपने सिर दोष भले ही न मढ़ें, पर वे सही दिशा में सोचने से भी कतरा रहे हैं।
मथुरा शहर में ही दस किलोमीटर की परिधि में शायद ही कहीं बीघा भर जगह बिना कंकरीट वाली बची हो। ऐसे में प्राकृतिक रूप से वर्षा जल संचयन का रास्ता ही खत्म हो गया है। दूसरी ओर नगर पंचायतों में भी यह स्थिति दो से तीन किलोमीटर की परिधि में बन चुकी है। केवल देहात बचा है, वहां भी तालाब-पोखर रिचार्जिग के मामले में कागजी खानापूर्ति के शिकार हैं।
प्राकृतिक रूप से वर्षा संचयन के रास्ते बंद होने के बाद ही कृत्रिम रूप से जमीन के अंदर गढ्डा करके वाटर हार्वेस्टिंग की योजनाएं आ रही हैं, पर उन पर भी कारगर अमल नहीं है। पारंपरिक, सस्ते और जन सुलभ संचयन प्रणाली को न अपनाने पर जल प्रणाली से जुड़े जानकार कहते हैं कि यदि ऐसा ही रहा तो एक दिन पैसा भी पानी के काम नहीं आएगा। नागरिकों को अपनी छत का पानी तो कम से कम जमीन के अंदर भेजना शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए स्व-जागरुकता लाने की जरुरत है।
गोकुल बैराज पेयजल पुनर्गठन परियोजना वाटर हार्वेस्टिंग के सूत्र को विकसित करने के लिए ही लायी गयी थी। तब तर्क दिया गया था कि बैराज पर यमुना जल भरा रहेगा तो शहर में न केवल पेयजल सप्लाई सुलभ होगी, बल्कि यमुना की तली में जाने वाला पानी आसपास के भू गर्भ जल को भी पोषित करेगा। इससे पानी की गुणवत्ता बढ़ेगी और वाटर लेबल बढे़गा, पर इसके परिणाम ज्यादा घातक आ रहे हैं। प्रदूषण और पालीथिन ने यमुना की सतह को ठोस कर दिया है, जिस वजह से दो-तीन मीटर अंदर तक जमीन पानी अवशोषित करने की स्थिति में ही नहीं है, जबकि सालाना करोड़ों फूंकने के बाद भी बैराज का पानी पेयजल में शुमार नहीं हो पाया है।
पानी के कलेक्शन के दो तरीके हैं। एक अंडर ग्राउंड वाटर रिचार्जिग और दूसरा जमीन पर पानी का कलेक्शन। छत पर पानी कलेक्ट करने की विधियां घरों पर तो हैं ही नहीं, सरकारी भवन भी पूरी तरह आच्छादित नहीं हो सके हैं। जबकि अंडर ग्राउंड वाटर हार्वेस्टिंग के मामले में तालाब, पोख्रर, चेक डैम, कुआं, रोड किनारे की खंदक व रिचार्ज पिट्स यानि जमीन के अंदर होल करने की परंपरा भी नहीं है।
किसी भी शहर में सालाना आनुपातिक 780 मिमी बारिश होती है, किसी मकान की सौ वर्ग फीट छत पर 55 हजार लीटर जल गिरता है जो किसी परिवार के पांच सदस्यों को सौ दिन तक जलापूर्ति कर सकता है, पर पिछले दस साल में इस औसत में कमी आयी है। अब यह साढ़े पांच सौ मिमी औसतन रह गयी है।
पानी को नहीं भटकेंगे वन्य जीव
मथुरा (DJ 2010.07.05)। वन्य जीवों को अपनी प्यास बुझाने के लिए अब ज्यादा दौड़-धूप नहीं करनी पड़ेगी। उनको जंगलों में ही पानी मिल जाएगा। इसके लिए वन विभाग जगह-जगह वाटर होल्स बनाने जा रहा है।
पानी की कमी से जंगली जीवों को यमुना या फिर नहरों के किनारे ही प्रवास करना पड़ रहा है। दूसरे क्षेत्रों में प्रवास करने वाले जीवों को अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश में लंबी दूरी तय करनी पड़ रही हैं। यहां के जंगलों में जंगली सूअर, मेडी, नीलगाय, काला हिरन, गीदड़, खरगोश, मोर, सारस, जंगली बिलाऊ, चीतल, लकड़बग्घा आदि वन्य जीव देखे गए हैं।
इनका प्रवास यमुना के खादरों के अलावा बरसाना की पहाड़ी, फरह, मांट ब्रांच और आगरा कैनाल के किनारे, वन ब्लॉक और शेर नगर के जंगल बताए गए हैं। जबकि नीलगाय तो पूरे जनपद में देखी जा रही हैं। बताया गया है कि पानी की तलाश में निकलने वाले वन्य जीवों को शिकारी अपना निशाना बना रहे हैं। कभी-कभी वन्य जीव पानी की तलाश में गांवों के किनारे आ जाते हैं और ग्रामीण बाद में उनको घेर कर हानि पहुंचा देते हैं। पूर्व में इस तरह के कई मामले प्रकाश में भी आए हैं। बताया गया है कि प्रजनन के लिए बड़ी संख्या में हंस भी वृंदावन के आसपास यमुना किनारे आते हैं।
नियमों की कब्र पर बहुमंजिला इमारतें
मथुरा (DJ 2010.07.05) । जिस क्षेत्र के लोग सुरक्षा के तामझाम की वजह से करीब दो दशक से नियमों के मकड़जाल में जीने को विवश कर दिये गये हों, उसी इलाके में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नियम-कानूनों की 'कब्र' पर बहुमंजिला इमारतों का निर्माण करा लेते हैं और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण कर्मियों को संबंधित लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने की फुर्सत नहीं मिलती।
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद के यलो जोन में रफ्ता-रफ्ता कई बहुमंजिला भवनों का निर्माण कर लिया गया है। सरकारी नियमों को ठेंगा दिखाकर बनाई गई ऐसी इमारतें संवेदनशील धार्मिक स्थलों को महफूज रखने की सरकारी कोशिशों पर भारी पड़ सकती है।
बात हो रही है श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाद मस्जिद के आसपास के क्षेत्र की। ये दोनों धार्मिक स्थल आतंकियों की हिट लिस्ट में शामिल बताये जाते हैं। इनको महफूज रखने की खातिर इनकी सुरक्षा के तामझाम पर हर साल करोड़ों रूपये खर्च होते हैं।
इन संवेदनशील धार्मिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह पुख्ता बनाने की कड़ी में रेड जोन परिधि में निर्माण कार्य अनुमन्य नहीं हैं तो श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद परिसर के परिधि से यलो जोन की सौ मीटर की परिधि के अंतर्गत बहुमंजिला इमारतों का निर्माण प्रतिबंधित है।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की वर्ष 2002 में हुई बोर्ड बैठक में इस बारे में प्रस्ताव पारित कर अपर पुलिस अधीक्षक सुरक्षा समेत कई अन्य अफसरों को इसकी जानकारी दे दी गई थी। बताया गया था कि विप्रा यलो जोन में बहुमंजिला भवनों के निर्माण के लिये नक्शा स्वीकृत नहीं करेगी।
रेड जोन में तो इस नियम का पालन हो रहा है, लेकिन जन्मभूमि के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने यलो जोन में पिछले समय में कई बहुमंजिला इमारतों का निर्माण कर लिया गया है। इनमें होटल व धर्मशालाएं आदि भी शामिल हैं, जहां देशी-विदेशी आकर ठहरते रहते हैं।
इन बहुमंजिला इमारतों की इन संवेदनशील धार्मिक स्थलों से बहुत अधिक दूरी नहीं है। इस बारे में विप्रा अफसरों से बात नहीं हो सकी, लेकिन एएसपी सुरक्षा आरपीएस यादव ने बताया कि ऐसे भवनों के निर्माण के खिलाफ विप्रा में आपत्तियां जतायी जाती रही हैं। नक्शा जारी करने का कार्य विप्रा का है।
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