Friday, July 2, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतम् २.४-६

Photo by Abha Shahra.

मरकतमयपत्रैर्हीरपुष्पैः सुमुक्ता
निकरकलिकयाढ्यैः कौरविन्दप्रवालैः ।
बहुविधरसपूर्णैः पद्मरागैः फलाद्यै-
रविरलमधुवर्षईर्नीलरत्नालिमालैः ॥

जिनके पत्र समूह मरकत मणिमय हैं, पुष्प समूह हीरा के सदृश हैं, कलिका समूह सुन्दर सुन्दर मुक्तावत् हैं, प्रवाल अङ्कुर समूह कुरुविन्द मणि की भांति हैं, अनेक प्रकार के रसों से पूर्ण फल समूह पद्मराग मणिवत् हैं एवं अविरल मधुवर्षी तथा नील रत्नों के समान मधुकर समूह से परिवेष्टित श्रीवृन्दावन के वृक्षराज शोभित हो रहे हैं ॥२.४॥



अगणितरविकोटिप्रस्फुरद्दिव्यभातिः
सकृदपि हृदि भातैः शीतलानन्ददृष्ट्या ।
प्रशमितभवतापैर्दुर्लभार्यान् दुहद्भिः
परमरुचिरहैमासङ्ख्यवृक्षैः परीतम् ॥

असंख्य कोटि कोटि सूर्य प्रभा के समान प्रकाशमान् परम रमणीय स्वर्णमय वृक्षों से श्रीवृन्दावन परिपूर्ण है । वह समस्त वृक्ष समूह एक वार मात्र हृदय में स्फुरित होने पर शीतलानन्द की वृष्टि के द्वारा संसार तापों को प्रशमन कर देता है एवं दुर्लभ पुरुषार्थ को देनेवाला है ॥२.५॥



वृन्दाटव्यामगणितचिदानन्दचन्द्रोज्ज्वलायां
सान्द्रप्रेमामृतरसपरिस्पन्दनैः शीतलायाम् ।
कूजन्मत्तद्विजकुलवृतानल्पकल्पद्रुमायां
राधाकृष्णावचलविहृतौ कस्य नो याति चेतः ॥

असंख्य चिदानन्द चन्द्रों की चांदनी के द्वारा प्रकाशमान, निविडएषां प्रेमामृत रस के हिलोड़ों से शीतल, पक्षि कुल के द्वार मुखरित एवं अनेक कल्प वृक्षों से शोभित श्रीवृन्दावन में निरंतर विहार करने वाले श्रीराधाकृष्ण की ओर किसका चित्त धावित नहीं होता ? ॥२.६॥


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