Photo by Gopinath Dasji.
सरोमाञ्चं सास्रं समनुन्यदालीः प्रियतमा ।
पदं वेण्या वध्वा क्षणमहह संप्रेष्य दयितं
क्वचिद्वृन्दारण्ये जयति मम तज्जीवनमहः ॥
अहो ! किसी समय प्रबल विरहावस्था में श्रीमती प्रेमातिशय्य के कारण व्याकुल होकर गद्गद वाणी से पुलकित एवं अश्रु पूर्ण लोचन युक्त हो अपनी प्रियतम सखियों को अनुनय विनय करके प्रिय श्यामसुन्दर के पास भेज कर थोड़े समय तक तीव्र असहिष्णुता के कारण वेणी से अपने चरणों को बान्धती हैं, मेरी जीवन स्वरूप श्रीराधा श्रीवृन्दावन में सर्वोत्कर्ष युक्त विराजमान हैं ॥२.६१॥
नवानङ्गक्षोभात्तरलतरलं नव्यललितम् ।
नवीनादृष्ट्यङ्गोक्तिषु मधुरभङ्गीर्दधदहो
महो गौरश्यामं स्मरत नवकुञ्जे तदुभयम् ॥
नव किशोर अवस्था प्राप्त, नव नव महा प्रेम के वशीभूत, नव काम क्षोभ से अत्यन्त चञ्चल, नव ललित दृष्टि में, अङ्गों में तथा बोलिन में नवीन मधुर धारण करने वाले, नवीन कुञ्जों में उन गौर श्याम ज्योति श्री युगल किशोर को स्मरण कर ॥२.६२॥
शनादौ विच्छिन्नं गुरुभिरनुरागैर्नवनवैः ।
सदा खेलद्वृन्दावननवनिकुञ्जावलिषु तद्
भजे गौरश्यामं मधुरमधुरं धामयुगलम् ॥
सम्प्रज्ञात न्यस्त प्राण, स्नान, भोजन, एवं शयनादि में भी सर्वदा अविच्छिन्न, नव नव प्रचुर अनुराग वश श्रीवृन्दावन के नव नव निकुञ्जों में सदा खेलन परायण उन मधुर मधुर गौर श्यामाकृति श्री युगल किशोर का भजन कर ॥२.६३॥
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