Wednesday, July 14, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतम् २.३७-३९



श्यामप्राणमृगैकखेलनवनश्रेणीसदाश्यामलोत्
खेलन्मानसमीनदिव्यसरसीश्यामालिसत्पद्मिनी ।
श्यामानङ्गसुतप्तहृच्छिशिरताकारि स्पुरच्चन्द्रिका
श्यामानन्यसुनागरेण विहरत्येका मम स्वामिनी ॥


श्यामसुन्दर के प्राणरूप मृग की एक मात्र क्रीड़ा स्थली, उज्ज्वल रस में क्रीड़ा परायण मानस रूप मीन मीन के लिये दिव्य सरोवर के समान, श्याम रूप भ्रमर के लिये पद्मिनी रूपा, श्याम के काम तप्त हृदय को शीतलता विधान करने वाली उज्ज्वल चन्द्रिका सदृश मेरी स्वामिनी अकेली श्यामा ही अतुलनीय श्याम सुनागर के साथ विहार करती हैं ॥२.३७॥



श्रीमद्वृन्दाकानने रत्नवल्ली
वृक्षैश्चित्रज्योतिरानन्दपुष्पैः ।
कीर्णे स्वर्णस्थल्युदञ्चत् कदम्ब-
च्छायायां नश्चक्षुषी गौरनीले ॥

रत्नमय लता वृक्षों से मण्डित विचित्र ज्योत्स्ना विस्तार करने वाले आनन्दमय पुष्पों से व्याप्त श्रीवृन्दावन में स्वर्ण स्थली से शोभित कदंब की छाया में विराजमान गौर नील वपु धारी श्रीयुगलकिशोर ही हमारे नेत्रों में नित्य विराजमान रहें ॥२.३८॥



श्रीवृन्दाकाननेऽत्यद्भुतकुसुमलसद्रत्नवल्लीनिकुञ्ज-
प्रासादे पुष्पचन्द्रातपचयरुचिरे पुष्पपल्यङ्कतल्पे ।
राधाकृष्णौ विचित्र स्मर समरकलाखेलत्नौ वीक्ष्य वीक्ष्या-
नन्दाद्विह्वलं संलुठदवनितले वन्द्यतामालिवृन्दम् ॥

श्रीवृन्दावन में अत्यन्त अद्भुत कुसुमों से शोभित रत्नमय लता निकुञ्ज प्रासाद महल में पुष्पमय चन्द्रातप समूह के द्वारा मनोहर पुष्प पालङ्क की शय्या पर विचित्र काम युद्ध में खेलन परायण श्रीराधाकृष्ण को देख देख कर आनन्द से विह्वल होकर पृथ्वी पर लोट-पोट होने वाली सखि वृन्द की वन्दना करनी चाहिये ॥२.३९॥


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