Photo by Gopinath Das.
प्रोत्सार्यैव प्रविष्टवज्जवनिकामुत्कीर्य पुष्पाञ्जलीम् ।
अत्याश्चर्यसनृत्यहस्तकमहाश्चर्याङ्गदृग्भङ्गिमोत्-
तुङ्गानङ्गरसोत्सवं भजति मे प्राणद्वयं कः कृती ॥
उसी मणि मय रङ्ग मञ्च पर सखी गणों के मुखोच्चारित श्रीब तथा मृदङ्ग ध्वनि के होते ही परदे को दूर कर पुष्पाञ्जलि विकीर्ण करते करते प्रवेश पूर्वक अतीव आश्चर्य जनक नाना प्रकार से हस्त भङ्गी सहित नृत्य करते हुए तथा महाश्चर्य मय अङ्गों व नेत्रों की भङ्गी के द्वारा सुमहान् काम रसोत्सव का विधान करने वाले मेरे प्राण प्रियतम युगल किशोर का भजन कोई पुण्यात्मा ही करता है ॥२.४६॥
महारसिकनागराद्भुतकिशोरयोस्तद्द्वयम् ।
विचित्ररतिलीलया नवनिकुञ्जपुञ्जोदरे
स्मरामि विहरन् महाप्रणयघूर्णिताङ्गं मिथः ॥
अनन्त रति शाली मनोहर कान्ति युक्त तथा विलास सम्मोहित उन महा रसिक नागर अद्भुत श्री युगल किशोर के विचित्र रति लीला हित नित्य नवीन निकुञ्जों में विहार परायण महा प्रीति रस में घूर्णित विग्रह युगल को स्मरण करता हूं ॥२.४७॥
वरं नवकिशोरयोर्द्वयमगाधभावं मिथः ।
पुरः स्फुरतु मन्मथक्षुभितमूर्तिवृन्दाटवीं
ममाधिवसतो महासरसदिव्यचक्षुर्युजः ॥
महा सरस दिव्य नेत्र धारी तथा वृन्दावन वासी मेरे सन्मुख स्वर्ण चम्पक कान्ति एवं नील कमल को निन्दित करने वाले रूप विशिष्ट नव किशोर दम्पती की एक दूसरे के प्रति अगाध भाव युक्त कामदेव विमोहित मूर्ति कब स्फुरित होगी ? ॥२.४८॥
No comments:
Post a Comment