Wednesday, July 21, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतं २.५८-६०




किशोरवयसः स्फुरत्पुरटरोचिषो मोहिनीः
सुचारुकृशमध्यमाः पृथुनितम्बवक्षोरुहाः ।
सुरत्नकनकाञ्चितस्फुरितनासिकमौक्तिकाः
सुवेणीः पटभूषणाः स्मरत राधिकाकिङ्करीः ॥

उन सखियों की वयस किशोर है, सुन्दर स्वर्ण हैं, एवं मोहिनी मूर्ति हैं । उनका मध्य देश अति सुन्दर एवं कृश है, नितम्ब तथा स्तन युगल पृथुल है, नासिका में रत्न एवं स्वर्ण जटित मुक्ता समूह लटक रहा है । सिर पर सुन्दर वेणी है, एवं परिधान मंं रशमी वस्त्र धारण कर रही हैं, इस प्रकार से श्रीराधाजी की सखियों को स्मरण कर ॥२.५८॥




सुरभ्या दोर्वल्लीवलयगणकेयूररुचिराः
क्वणत्काञ्चीमञ्जीरकर्मणि सुताटङ्कललिताः ।
लसद्वेणीवक्षोरुहमुकुलहारावलिरुचः
सम्रानन्यस्निग्धाः कनकरुचिराधाङ्घ्र्यनुचरीः ॥

जो परम रमणीय है एवं भुजलताओं में वाजु बन्द तथा कंकणों से सुशोभिता हैं, शब्दायमान काञ्ची नूपुर तथा मणिमय कर्ण फूलादिकों से सुसज्जित हैं, जो सुन्दर वेणी युक्त हैं, जिनके स्तन मुकुल पर हार समूह प्रतिबिम्बित हो रहा है, उन प्रेम शीला स्वर्ण वर्णा श्रीराधा की दासियों का स्मरण कर ॥२.५९॥




अहो वृन्दारण्ये सकलपशुपक्षिद्रुमलताद्य्
अनन्तैर्लावण्यैर्मधुरमधुरैः काञ्चननिभैः ।
महाप्रेमानन्दोन्मदसुरसनिष्पन्दसुभगः
किशोरं मे संमोहयदहह सर्वस्वमुदितम् ॥

अहो ! वृन्दावन में समस्त पशु पक्षी, वृक्ष लतादिकों को अपने स्वर्ण सदृश मधुर से मधुर लावण्य राशि के द्वारा एवं महा प्रेमानन्द में उन्मत्त करने वाले रस युक्त अक्षुण्ण सौन्दर्य के द्वारा मोहित करते हुए मेरा सर्वस्व किशोर श्रीराधा रूप प्रकट हुआ है ॥२.६०॥


No comments: