Wednesday, July 14, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतम् २.४o-४२


प्रेष्ठद्वन्द्वप्रसादाभरणवरपटस्रग्नवाभीरबाला
मालालङ्कारकस्तूर्यगुरुघुसृणसद्गन्धताम्बूलवस्त्रैः ।
वाद्यैः सङ्गीतनृत्यैरनुपमकलया लालयन्तीः सतृष्णा
राधाकृष्णावखण्डस्वरसविलसितौ कुञ्जवीथ्यामुपैमि ॥

प्रियतम युगलकिशोर के प्रसादी अलङ्कार, श्रेष्ठ वस्त्र माल्यादि से भूषित नवीना गोपकुमारी वृन्द माला, अलङ्कार, कस्तूरी, अगुरु, कुङ्कुम, मनोमद गन्ध, ताम्बूल, वस्त्र आदि समाहरण के द्वारा एवं अनुपम ताल लय युक्त वाद्य तथा नृत्यादि के द्वारा निकुञ्ज विलासी अखण्ड स्वरस विलासी श्रीराधाकृष्ण जोड़ी की जो सतृष्ण-भाव से सेवा कर रही हैं, मैं उनकी शरणापन्न होता हूं ॥२.४०॥



काश्चिच्चन्दनघर्षिणीः सघुसृणं काश्चित् स्रजो ग्रन्थतीः
काश्चित् केलिनिकुञ्जमण्डनपराः काश्चिद्वहन्तीर्जलम् ।
काश्चिद्दिव्यदुकूलकुञ्चनपराः संगृह्णतीः काश्चना
लङ्कारं नवमन्नपानविधिषु व्यग्राश्चिरं काश्चन ॥

कोई कोई गोप बाला उत्तम कुंकुम सहित चन्दन घर्षण कर रही हैं, कोई माला रचने में संलग्न हैं, कोई कोई केलि निकुञ्ज सुसज्जित कर रही हैं तो कोई जल ला रही हैं, कोई नवीन नवीन अलंकारों को संग्रह कर रही हैं, और कोई कोई व्यग्र चित्त से खाने पीने आदि की चेष्टा में बहुत दूर से लगी हुई हैं ॥२.४१॥


ताम्बूलोत्तमवीटिकादिकरणे काश्चिन् निविष्टा नवाः
काश्चिन् नर्तनगीतवाद्यसुकला सामग्रिसम्पादिकाः ।
स्नानाभ्यङ्गविधौ च काश्चन रताः संवीजनाद्ये सदा
काश्चित् संनिधिसेवनातिमुदिताः काश्चित् समस्तेक्षिकाः ॥

कोई कोई नवीना गोप बाला उत्तम ताम्बूल वाटिका आदि के निर्माण करने में संलग्न हैं, कोई नृत्य, गीत, वाद्यादि की उत्तम उत्तम कला विद्या दिखाने वाली वस्तुओं का आयोजन कर रही हैं, और कोई कोई स्नान उबटनादि की सामग्री संग्रह कर रही हैं, और कोई पंखा हाथ में लेकर पास में खड़ी होकर श्रीअङ्ग की सेवा के लिये अतिशय मुदित हो रही हैं, तथा और कोई सब विषयों की देख भाल कर रही हैं ॥२.४२॥


No comments: