Friday, July 30, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतं २.८५-८७


Photo by Gopi Dasi.


शुद्धानन्दरसैकवारिधिमहावर्तेषु नित्यं भ्रमन्
नित्याश्चर्यवयोविलाससुषमामाधुर्यमुन्मीलयत् ।
अत्यानन्दमदान् मुहुः पुलकितं नृत्यत् सखीमण्डले
श्रीवृन्दावनसीम्नि धाम युगलं तद्गौरनीलं भजे ॥

नित्य एक मात्र शुद्धानन्द रस समुद्र के महावर्तों में भ्रमण कारी, नित्य आश्चर्य मय अवस्था, विलास, शोभा एवं माधुर्यादि को प्रकाशित करने वाले तथा अतिशय आनन्द के आधिक्य के कारण बारम्बार पुलकित अङ्ग होकर सखी समाज में नृत्य करने वाले, श्रीवृन्दावन में विराजमान उन गौर नील वर्ण विशिष्ट श्रीयुगल किशोर का मैं भजन करता हूं ॥२.८५॥




श्रीराधापादपद्मच्छविमधुरतरप्रेमचिज्ज्योतिरेकाम्
भोदेरुद्भुतफेनस्तवकमयतनूः सर्ववैदग्ध्यपूर्णाः ।
कैशोरव्यञ्जितास्तद्घनरुगपघनश्रीचमत्कारभाजो
दिव्यालङ्कारवस्त्रा अनुसरत सखे राधिकाकिङ्करीस्ताः ॥

हे सखे! श्रीराधा के पादपद्म की कान्ति द्वारा मधुरतर प्रेम चिद्घनज्योति के एकमात्र समुद्र से उत्पन्न फेन समूहमय जिन के देह हैं, जो सर्व चतुरता पूर्ण हैं, व्यक्त किशोर अवस्था एवं तारुण्य छटा के द्वारा जिनके सुन्दर अवयव समूह परम सुन्दर तथा चमत्कार के पात्र हैं, उन्हीं दिव्यालङ्कारों तथा वस्त्रों से सुशोभित श्रीराधाजी की किङ्करीयों का अनुसरण कर ॥२.८६॥




भृङ्गीगुञ्जरितं पिकीकुलकुहूरावं नटत्केलिना
केकास्ताण्डवितानि चातिललितां कादम्बयूनोर्गतिम् ।
आश्लेषं नववल्लरीक्षितिरुहां त्रस्यत्कुरङ्गेक्षितं
श्रीवृन्दाविपिनेऽनुकुर्वदनुयाह्यात्मैकबन्धुद्वयम् ॥

श्रीवृन्दावन में भ्रमरों की गुञ्जार का, कोयल समूह के कुहू कुहू मधुर शब्द का, नृत्य परायण मोर समूह की केका ध्वनि, एवं ताण्डव नृत्य का कलहंस युगल की सुललित गति का, नवीन नवीन वृक्ष लताओं के आलिङ्गन का एवं डरे हुए हरिण समूह की नयन भङ्गिमा आदि का अनुकरण करने वाले प्राण प्रियतम युगल का अनुसरण कर ॥२.८७॥


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