Monday, July 5, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतम् २.१३-१५


Photo by Abha Shahra.

अनन्तरुचिमत्स्थलं स्फुरदनन्तवल्लीद्रुमं
मृगद्विजमनन्तकं दधदनन्तकुञ्जोज्ज्वलम् ।
अनन्तसुसरित्सरोवरमनन्तरन्ताचलं
स्मराम्यहमनन्ततद्द्वयरतेन वृन्दावनम् ॥

अनन्त मनोहर स्थलों से युक्त, अनेक वृक्ष वल्लरी समूह से शोभित, अनन्त पशु पक्षियों से आकुलित, उज्ज्वलोज्ज्वल अनन्त कुञ्ज-वाटिकाओं से मण्डित अनन्त सुमनोहर नदी-तड़ागों से युक्त, अनन्त रत्न-पर्वतों से सन्निविष्ट, युगल किशोर की अनन्त रत्नमयी लीलाओं के स्थान श्रीवृन्दावन को मैं स्मरण करता हूं ॥२.१३॥



भ्रातर्भोगाः सुभुक्ताः क इह न भवता नापि संसारमध्ये
विद्यादानाध्वराद्यैः कति कति जगति ख्यातिपूजाद्यलब्धाः ।
अद्याहारेऽपि यादृच्छिक उरुगुणवानप्यहो संवृतात्मा
श्रीमद्वृन्दावनेऽस्मिन् सततमट सखे सर्वतो मुक्तसङ्गः ॥२.१४॥

हे भाई ! इस संसार में तुमने क्या क्या सुभोग उपभोग नहीं किया है ? इस जगत में विद्या दान एवं यज्ञादि के द्वारा क्या तुमने बहुत् ख्याति पूजादि प्राप्त नहीं की है ? आज के आहार में भी यदृच्छा लब्ध वस्तु में सन्तोष करते हुए एवं बहुत गुणी होकर भी अपने गुणों को छिपाते हुए इस श्रीवृन्दावन में सर्व-सङ्ग को छोड़कर सर्वदा भ्रमण कर ॥२.१४॥



वृन्दारण्यं त्यजेति प्रवदति यदि कोऽप्यस्य जिह्वां छिनद्मि
श्रीमद्वृन्दावनान् मां यदि नयति बलात् कोऽपि तं हन्म्यवश्यम् ।
कामं वेश्यामुपेयां न खलु परिणयायान्यतो यामि कामं
चौर्ये कुर्यां धनार्थं न तु चलति पदं हन्त वृन्दावनान्मे ॥

यदि कोई मुझे वृन्दावन त्याग करने को कहे, तो मैं उसकी जिह्वा काट लूंगा, यदि कोई मुझे बल-पूर्वक श्रीवृन्दावन से अन्यत्र ले जाये, तो मैं अवश्य ही उसको मार डालूंगा । इच्छा होने पर भले ही मैं वैश्या का सङ्ग कर लूंगा, तथापि विवाह करने के लिये अन्यत्र नहीं जाऊंगा । धन के लिये भले ही यथेष्ट चोरी कर लूंगा, तथापि हाय ! श्रीवृन्दावन से बाहर एक पद भी नहीं जाऊंगा ॥२.१५॥


No comments: