Monday, July 12, 2010

श्रीवृन्दावन-महिमामृतम् २.३१-३३

Photo by Gopinath Das.


परिचर चरणसरोजं तद्गौरश्यामरसिकदम्पत्योः ।
वृन्दावननवकुञ्जावलिषु महानङ्गविह्वलयोः ॥


श्रीवृन्दावन के नवीन कुंजों में जो महानङ्ग से विह्वल हो रहे हैं, उन्हीं गौर श्याम रसिक युगल के चरण कमलों की परिचर्या कर ॥२.३१॥





अतिकन्दर्परसोन्मदमनिशं विवर्धिष्णु तन्मिथःप्रेम ।
घनपुलकगौरलीलाकृति नवमिथुनं निकुञ्जमण्डले स्मर ॥


कन्दर्प रस में अति उन्मत्त उस युगल किशोर का पारस्परिक प्रेम नित्य ही वर्धित होता है । घन पुलकावलि से शोभित उस गौर नील कान्ति विशिष्ट नवीन जोड़ी की निकुंज मण्डल में चिन्ता कर ॥२.३२॥





पूर्णप्रेमानन्दचिच्चन्द्रिकाब्धेर्मध्ये द्वीपं किञ्चिदाश्चर्यरूपम् ।
तत्राश्चर्या भाति वृन्दाटवीयं तत्राश्चर्यौ गौरनीलकिशोरौ ॥


पूर्ण प्रेमानन्द दिव्य ज्योत्स्ना के समुद्र में एक आश्चर्य रूप द्वीप है, फिर उस में यह वृन्दाटवी और एक आश्चर्य है, उसमें भी परम आश्चर्य रूप यह गौर नील युगल किशोर हैं ॥२.३३॥


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