Sunday, July 25, 2010

2010-07-26 ब्रज का समाचार



Danghati temple. Pictures of previous years' Mudiya Purnima

60 लाख श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी


मथुरा (DJ 2010.07.25)। उत्तर भारत के प्रख्यात गोवर्धन मुड़िया पूर्णिमा मेला आस्था के समागम के साथ समापन हो गया। इस मौके पर देश के विभिन्न राज्यों से करीब साठ लाख श्रद्धालुओं ने आकर यहां गिरिराज महाराज की परिक्रमा कर मानसी गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। इस मौके पर मेला के मुख्य आकर्षण मुड़िया संतों की शोभायात्रा पारम्परिक ढंग से निकली। इस दौरान सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त रहे।

ब्रजभूमि के मिनी कुम्भ के रूप में मशहूर गोवर्धन के मुड़िया पूनों मेला के अंतिम दिन रविवार को गिरिराज महाराज के प्रति अगाध श्रद्धा नजर आई। यह मेला पिछले पांच दिनों से अनवरत चल रहा आ रहा था।

सबसे ज्यादा भीड़ का सैलाब पूर्णिमा के दिन उमड़ा। यहां मुड़िया पूर्णिमा के दिन गिरिराज महाराज की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है। भोर से ही श्रद्धालुओं की भीड़ गोवर्धन की ओर उमड़नी शुरू हो गई। भीड़ का दबाव यातायात के मुख्य साधन रोडवेज की बसें और ट्रेन कम पड़ गई।

हर तरफ से आ रहा श्रद्धालुओं का कारवां गोवर्धन में गिरिराज महाराज की जय-जयकार करता हुआ कस्बा में घुस रहा था। परिक्रमा मार्ग के सात कोस में गिरिराज महाराज की जय-जयकार गूंज रही थी।

मेला में मुड़िया पूर्णिमा के मुख्य आकर्षण मुड़िया संतों की शोभायात्रा रविवार अपराह्न करीब 11 बजे से चक्लेश्वर स्थित राधा श्यामसुंदर मंदिर से निकली। इसमें मुड़िया संत सनातन गोस्वामी के चित्रपट को डोला में विराजमान कर निकले। इस दौरान मुड़िया संत सिर मुंडन करा कर ढोल, झांझ, मजीरे, मृदंग आदि बजाते हुए संकीर्तन करते हुए निकले। शोभायात्रा के दौरान तमाम श्रद्धालुओं ने संत सनातन गोस्वामी को अपनी श्रद्धाजंलि दी।

शोभायात्रा चक्लेश्वर से लेकर दसविसा, बिजली घर तिराहा, सौंख अड्डा, दानघाटी, बड़ा बाजार, हाथी दरवाजा होकर वापस मंदिर पर पहुंची, जहां मुड़िया संतों की श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया गया। इसमें संत तमालकृष्ण दास ने संतों के बीच प्रवचन दिये। इस दौरान सुरक्षा के कड़े प्रबंध रहे।

इधर मेला में देश के विभिन्न राज्यों से आकर करीब साठ लाख श्रद्धालुओं ने मानसी गंगा में भक्ति के सागर में डुबकी लगाई।

यातायात व्यवस्थाएं चरमराई

गुरु पूर्णिमा पर यहां विभिन्न आश्रमों में आये श्रद्धालुओं की लौटती भीड़ के दबाव में जंक्शन रेलवे स्टेशन की व्यवस्थाएं चरमरा गई। यात्री जान जोखिम में डालकर कासगंज पैसेंजर की छतों पर चढ़ गये। प्लेटफार्मो के साथ ही स्टेशन परिसर में भी यात्रियों के पैर रखने की जगह नहीं थी। ऐसे में उन्हें खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बसों की भी यही हालत रही। भीतर ही नहीं बसों की छतों पर भी जगह के लिए मारपीट तक हुई।



करोड़ी से लख्खी हुआ मुड़िया मेला!


मथुरा (DJ 2010.07.25)। अगर मुड़िया पूर्णिमा मेला की भीड़ के आंकड़े पर गौर करें तो यह अब करोड़ी से लख्खी हो गया है। यह हालात तो तब हैं जब इस बार गिरिराज महाराज का समूचा सात कोस का दरबार काफी चौड़ा हो गया है। 2007 और 2008 में मेला में अच्छी खासी भीड़ उमड़ी थी। मेला में भीड़ का अनुमान को देख कर मेला को करोड़ी मेला का नाम दिया गया था। 2006 में तो मेला में रिकार्ड भीड़ उमड़ी थी। तब करीब सवा करोड़ श्रद्धालुओं का आगमन हुआ था। 2009 के मेला से कुछ गिरावट दर्ज की गई। प्रशासन के अनुमान को ही मानें तो बीते मुड़िया पूर्णिमा मेला में अस्सी लाख श्रद्धालु आए थे। इस बार इनकी संख्या महज साठ लाख रही। गोवर्धन विकास मंच के संयोजक हरिओम शर्मा का मानना है कि मेला में भीड़ की कमी का कारण सबसे ज्यादा सुविधाओं का अभाव है।

कभी सवा करोड़ फिर अस्सी लाख और अब करीब साठ लाख श्रद्धालु। यह है उत्तर भारत के प्रख्यात मुड़िया पूर्णिमा मेला में श्रद्धालुओं की आमद का आकड़ा। सुविधाएं कम पड़ती हैं या फिर भीड़ में न आने की इच्छा या फिर कुछ और, कारण जो भी हो, लेकिन यह सोचनीय है कि आखिर मुड़िया पूर्णिमा मेला की आस्था से श्रद्धालु क्यों कतरा रहे हैं?

विगत तीन सालों पूर्व अगर मुड़िया पूर्णिमा मेला की भीड़ के आंकड़े पर गौर करें तो कुल मिलाकर गोवर्धन जैसी प्रमुख धार्मिक नगरी के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है। यह हालात तो तब हैं जब इस बार गिरिराज महाराज का समूचा सात कोस का दरबार काफी चौड़ गया है।

मेला में किसी न किसी रूप से मेला की गतिविधियों से जुड़ने वाले जानकार लोग बताते हैं कि विगत तीन साल से मेला में भीड़ की गिरावट देखी जा रही है। अगर सन् 2007 और 2008 में आयोजित मुड़िया पूर्णिमा मेला पर गौर करें तो मेला में अच्छी खासी भीड़ उमड़ी थी।

मेला में भीड़ का अनुमान को देख कर मेला को करोड़ी मेला का नाम दिया गया था। जबकि उससे पीछे 2006 के मेला में रिकार्ड भीड़ उमड़ी थी। जिसमें करीब सवा करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन की लोगों ने बात कही गई थी। लेकिन विगत 2009 के मेला से कुछ गिरावट दर्ज की गई। प्रशासन के अनुमान को ही मानें तो बीते मुड़िया पूर्णिमा मेला में अस्सी लाख श्रद्धालुओं की संख्या में आकर रुका। जिस पर शायद ही किसी ने विचार किया हो, लेकिन अब मेला को पूरी तरह से राजकीय दर्जा प्राप्त हो चुका है।

व्यवस्थाओं के नाम पर बजट भी करोड़ों में पहुंच गया है जो कि कभी मिलता नहीं था और मिला भी तो महज लाखों में। लेकिन इस बार पूर्णिमा पर भीड़ जरूर उमड़ी, लेकिन उतनी नहीं जितनी पूरे मेला को देखकर अनुमान था। गौर करें तो यह भीड़ पूर्व के अस्सी लाख श्रद्धालुओं के आकड़े को भी नहीं छू सकी। इस बात को स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि प्रशासनिक अफसर भी मानने लगे हैं। जबकि मेला में श्रद्धालुओं को सुविधाएं दिये जाने को लेकर जिलाधिकारी डीसी शुक्ला कहते हैं कि प्रशासन ने अपनी ओर से सुविधाओं में कोई कमी नहीं रखी।

पूर्व से बेहतर व्यवस्थाएं की गई है। उनका कहना है कि प्रशासन ने अपनी ओर से पूरी ताकत लगाई। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बीडी पॉल्सन भी सुविधाओं से सहमत हैं। उनका कहना है कि इस बार तो रास्ते पूरी तरह से चौड़े हो गये हैं। इसलिए भीड़ कम दिख रही है।

रास्तों पर अतिक्रमण भी नहीं लगने दिया गया है। श्रद्धालुओं को आसानी से चलने का मौका मिला है। लेकिन वे भी मानते हैं कि इस मेला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी चाहिए और इसके लिए प्रचार प्रसार होना बेहद जरूरी है। लेकिन इसके लिए स्थानीय लोगों को भी प्रयास करने चाहिए।

उधर इस बारे में मंदिर दानघाटी के सेवायत रहे मथुरा प्रसाद कौशिक कहते हैं कि विगत वर्षो की अपेक्षा इस बार मेला में भीड़ कम है, जो कि गोवर्धन के लिए अच्छा संकेत नहीं है। गोवर्धन विकास मंच के संयोजक हरिओम शर्मा का मानना है कि मेला में भीड़ की कमी का कारण सबसे ज्यादा सुविधाओं का अभाव है।

श्रद्धालुओं को परेशानी होती है। ऐसे में यह भी तर्क उन्होंने दिया कि अधिक मास मेला चल कर चुका है। इस बारे में पं. शिवलाल चतुर्वेदी रसिक चाचू चौबे का कहना है कि सुविधाएं कम पड़ती हैं, भीड़ अधिक होती है, ऐसे में श्रद्धालु भीड़ में आने की बजाय सामान्य दिनों में आकर परिक्रमा करना ज्यादा बेहतर समझता है। यह भी मुड़िया मेला पर भीड़ कम आने का कारण हो सकता है।



मानसी गंगा और राधाकुण्ड में डूबने से तीन की मौत



मथुरा (DJ 2010.07.25)। मुडिया पूर्णिमा मेला के दौरान मानसी गंगा और राधारानी कुण्ड में डूबने से तीन परिक्रमार्थियों की मौत हो गई। इनमें से एक परिक्रमार्थी को तीन घंटे तक उचित चिकित्सा सुविधा नहीं मिली। जिला अस्पताल में उसे मृत घोषित किये जाने पर परिजनों ने हंगामा काटा। एक परिक्रमार्थी की हृदय गति रुक जाने से गेस्ट हाउस में मौत हो गई।

इस बार मुडि़या पर्व पर कई लाख श्रद्धालुओं ने गिरिराज जी की परिक्रमा कर मानसी गंगा मंर गोते लगाए। उनकी सुरक्षा के लिए मानसी गंगा पर पीएसी की मोटरबोट के साथ ही गोताखोर भी तैनात किये गये थे। माइक से परिक्रमार्थियों को गहरे पानी में न जाने की हिदायत दी जा रही थी। घाटों पर बल्लियां भी लगाई गर्ई थीं।

इसके बावजूद मानसी गंगा में स्नान के दौरान दो हादसे हुए। फरीदाबाद निवासी नरेश मानसी गंगा में स्नान करते समय गहरे पानी में डूब गया। इसी तरह वीरभान पुत्र छोटेलाल निवासी मुकंदपुरा बाह, आगरा भी गहरे पानी में डूब गया। उसे जैसे-तैसे पानी से बाहर निकाला गया। उपचार के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोवर्धन ले जाया गया। वहां चिकित्सक नहीं मिलने पर एक प्राइवेट चिकित्सक के यहां पर ले जाया गया। परिजनों ने बताया कि प्राइवेट चिकित्सक ने पेट को दबा कर पानी निकालकर इंजेक्शन लगा दिया।

यहां से वीरभान को मथुरा रेफर कर दिया गया। परिजनों का आरोप है कि स्वास्थ्य केंद्र की जीप यूपी 85 डी-0080 तड़पते युवक को लेकर तीन घंटे में मथुरा जिला अस्पताल पहुंची, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। परिजनों ने युवक को बीच में किसी प्राइवेट अस्पताल में दिखाने की गुहार की थी, लेकिन जीप चालक ने उनकी एक नहीं सुनी। इसे लेकर परिजनों ने जिला अस्पताल में हंगामा काटा। होलीगेट चौकी प्रभारी अनिल कुमार ने पहुंच कर परिजनों को समझाया।

एक अन्य हादसे में राधाकुंड में चिक्कू पुत्र नौरंगी ग्राम पटालौनी थाना बलदेव की स्नान करते समय डूबकर मौत हो गई। वहीं श्रद्धालु रजनी कांत लधानी निवासी मुम्बई महाराष्ट्र की मौत स्थानीय गेस्ट हाऊस में हृदय गति रुक जाने से हो गई। वह गिरिराजजी की परिक्रमा लगाकर अपने कमरे में आराम कर रहा था।



परिक्रमा अधूरी, जिंदगी पूरी


अलीगढ़ सोगरा गांव से बस संख्या पीबी 10 एम-3215 में ग्रामीण परिक्रमा करने गोवर्धन आ रहे थे। राया के डबल रेलवे फाटक के समीप आकर बस खराब हो गई। चालक और परिचालक बस को ठीक करने में लगे थे कि परिक्रमार्थी महिलाएं और पुरुष बस से उतर गए। इसी दौरान पीछे की ओर से आती मेटाडोर टाटा आरजे14जीबी-3458 के चालक ने रात करीब सवा बजे खड़ी बस में जोरदार टक्कर मार दी। घायलों को डालकर मथुरा जिला अस्पताल लेकर आया गया। यहां ओमवती निवासी लोहरई अलीगढ़ और मुन्नी देवी निवासी पचगांव मेरठ को मृत घोषित कर दिया गया। गिरि प्रसाद शर्मा व शीतल निवासी सोगरा, कुसुम व मोहर सिंह लहटोई, अलीगढ़ गंभीर रूप से घायल हो गए। जयगुरूदेव मंदिर के समीप हाईवे पार करते समय ट्रौला की चपेट में आकर विठ्ठल भाई निवासी जलगांव, महाराष्ट्र की मौत हो गई।



गोवर्धन परिक्रमा: जंक्शन पर लौटती भीड़ का भारी दबाव


मथुरा (DJ 2010.07.25)। गुरु पूर्णिमा पर्व पर यहां विभिन्न आश्रमों में आये श्रद्धालुओं की लौटती भीड़ के दबाव में जंक्शन रेलवे स्टेशन की व्यवस्थाएं चरमरा गई। यात्री जान जोखिम में डालकर कासगंज पैसेंजर की छतों पर चढ़ गये। प्लेटफार्मो के साथ ही स्टेशन परिसर में भी यात्रियों के पैर रखने की जगह नहीं थी। ऐसे में उन्हें खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

गुरु पूर्णिमा पर्व पर मथुरा-वृंदावन एवं गोवर्धन आने वाले श्रद्धालुओं का रविवार की दोपहर से लौटने का क्रम शुरु हो गया। इससे मथुरा जंक्शन और छावनी रेलवे स्टेशनों पर भीड़ का काफी दबाव रहा। दोनों स्टेशनों पर पैर रखने तक को जगह नहीं थी। ट्रेनों में पहले से ही भीड़ होने के कारण तमाम यात्री टिकट लेने के बाद भी उनमें चढ़ नहीं सके। उन्हें जंक्शन परिसर में ही रात बिताने को मजबूर होना पड़ा।

उमस भरी गर्मी में जंक्शन पर यात्रियों का बुरा हाल था। उन्हें टिकट के लिये भी काफी जद्दो-जहद करनी पड़ी। उधर, जीआरपी एवं आरपीएफ के जवान संदिग्धों पर नजर रखे हुए थे। वे समय-समय पर प्रतीक्षालय, टिकट हॉल, स्टेशन परिसर में भ्रमण कर यात्रियों एवं उनके बैगों आदि की चेकिंग करते रहे।



स्वांस की पूंजी दूसरों को दे देते हैं संत-जयगुरुदेव


मथुरा (DJ 2010.07.25)। बाबा जयगुरुदेव ने कहा है कि जो महात्मा जिस काम के लिये आते हैं वे उसे करते हैं और बाद में बची हुई स्वांस की पूंजी दूसरे को दे देते हैं। वे समय से कार्य करके चले जाते हैं।

गुरु पूजन के लिये रविवार को आये शिष्य समुदाय को बाबा ने बताया कि बाहर की पूजा शरीर की दोनों आंखों से और सच्ची पूजा अंदर की तीसरी आंख से होती है। अंतर की दृष्टि को गुरु की तरफ करने पर पाएंगे कि गुरु प्रकाश में बैठे हैं, उनके चारों तरफ उजाला ही उजाला है। जब गुरु दरबार में रहोगे तो ऊपर और नीचे दोनों तरफ दिखाई देगा। संत ने कहा सच्चे सांई, गुरु सतलोक में हैं। पूरा देश सतलोक देश सच्चे गुरु का है। साधना तो निमित्त मात्र है बाकी सब दया का काम है। साधक प्रकाश तभी बर्दाश्त कर सकेगा जब गुरु अपना रूप दिखाते चलें। नहीं तो प्रकाश में आंखें बंद हो जाती हैं खुलती नहीं हैं। आवाज इतनी तेज आती है कि साधक बर्दाश्त नहीं कर सकता और उसकी मृत्य़ु हो सकती है। गुरु धीरे-धीरे बर्दाश्त कराते हैं।

साधना, सत्य पथ पर आरूढ़ होने के संदेश में महात्मा ने सभी से शाकाहारी रहने, कोई नशा नहीं करने तथा जीव-जंतु एवं मनुष्य को जान से न मारने की दृढ़ प्रतिज्ञा करने की सीख दी। बाबा ने इस अवसर पर नामदान दिया। यहां कई दर्जन दहेज रहित शादी भी कराई गई। गुरु पूजन के पश्चात हजारों लोग मेला परिसर में स्थापित टिकट घर से घर वापसी के लिये टिकट मांगने लगे हैं। कई हजार सेवक अपनी गाड़ियों से गंतव्य को रवाना हो गये।



गुरु दक्षिणा में ज्यादा दिखे नए संघी


मथुरा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गुरु दक्षिणा में भगवा ध्वज को प्रणाम करने वाले इस बार नए चेहरे ज्यादा थे। यह पिछले समय में चले भर्ती शिविरों का असर है, पर पारंपरिक रूप से दक्षिणा देने वालों में पुराने चेहरे कम संख्या में पहुंचे। उद्योग जगत की उपस्थिति भी नाममात्र की रही।

गुरु पूर्णिमा के पर्व पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ गुरु दक्षिणा कार्यक्रम हर साल आयोजित करता है। स्थानीय जुबली पार्क स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में रविवार को अखिल भारतीय ग्राम्य विकास प्रमुख एवं संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा. दिनेश मुख्य वक्ता थे। इस मौके पर पहुंचने वाले भगवा ध्वज के समक्ष नतमस्तक हुए और लिफाफा बंद दक्षिणा भेंट की।

कार्यक्रम में संघ व भाजपा से जुड़े कई प्रमुख पदाधिकारी व नेताओं की उपस्थिति नहीं हो सकी। यह चर्चा का विषय भी रही, जबकि उद्योग जगत से भी एकाध ने ही कार्यक्रम में पहुंचना जरूरी समझा। हर साल आने वाले संघ, भाजपा व उसके आनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारी व नेताओं के न दिखने से इस दौरान रौनक कम रही, पर गुरु दक्षिणा कार्यक्रम में नए स्वयं सेवकों के पहुंचने से संघ नेताओं के चेहरे खिले रहे।

संघ से नए जुड़े लोगों ने अभी संघ की परंपराओं व नियमों को प्राथमिक तौर पर भी पूरी तरह से नहीं समझा है, यह भी कार्यक्रम के दौरान परिलक्षित हुआ। बताया गया है कि संघ के ध्वज को नमस्कार करने का एक विशेष तरीका है, जिसे सभी नए जुड़े लोगों ने सही तरीके से अनुगमन नहीं किया, जबकि एक नए स्वयंसेवक ने तो सीधे मुख्य वक्ता के हाथ में ही दक्षिणा देने का प्रयास किया, जिसे लेने से उन्होंने विनम्रता से इंकार कर दिया।


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