Gopinath Dasji.
रङ्गैस्तारुण्यभङ्गीभरमधुरचमत्कारिरोचिस्तरङ्गैः ।
अत्यन्तान्योन्यासाक्त्या निमिषममिलनादार्तिमूर्ती भवन्तौ
तौ वृन्दारण्यवीथ्यां भज भरितरसौ दम्पती गौरनीलौ ॥
उद्दाम अनङ्ग रङ्ग रस के कारण सम्प्रज्ञात मिलन में मनोरम, अविच्छिन्न विविध नृत्य गीतादि के द्वारा एवं यौवन रस के नाना विध मधुर तथा चमत्कारकारी दीप्ति लावण्य के द्वारा आपस में अतिशय आसक्ति के कारण निमिष मात्र के विरह से भी आर्ति मूर्ति धारण करने वाले पूर्ण रस स्वरूप गौर श्याम युगल का श्रीवृन्दावन की गलियों में भजन कर ॥२.६४॥
कुरु पुरुषार्थशिरोमणिमाचिनु वृन्दावने स्वयं पतितम् ॥
नश्वर सुत, धन तथा स्त्री आदि श्रीहरि की मायामय वस्तुओं के लिये यत्न न कर, श्रीवृन्दावन में स्वयं पड़े हुए पुरुषार्थ शिरोमणि का चयन कर ॥२.६५॥
भज रतिकेलिसतृष्णौ राधाकृष्णौ तदेकभावेन ॥
श्रीवृन्दावन में श्रीमत् कलिन्दनन्दिनी श्रीयमुना के तीर पर वृक्ष के नीचे रति केलि तृष्णा शील श्रीराधा-कृष्ण का अनन्य भाव से भजन कर ॥२.६६॥
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